सत्संग से एक सामान्य कीड़ा महान् मैत्रेय ऋषि बन गया !
तुलसीदास जी महाराज कहते हैं –
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तुलसी संगत साध की हरे कोटि अपराध।।
एक बार शुकदेव जी के पिता भगवान वेदव्यासजी महाराज कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक कीड़ा बड़ी तेजी से सड़क पार कर रहा था।
वेदव्यासजी ने अपनी योगशक्ति देते हुए उससे पूछाः
"तू इतनी जल्दी सड़क क्यों पार कर रहा है? क्या तुझे किसी काम से जाना है? तू तो नाली का कीड़ा है। इस नाली को छोड़कर दूसरी नाली में ही तो जाना है, फिर इतनी तेजी से क्यों भाग रहा है?"
कीड़ा बोलाः "बाबा जी बैलगाड़ी आ रही है। बैलों के गले में बँधे घुँघरु तथा बैलगाड़ी के पहियों की आवाज मैं सुन रहा हूँ। यदि मैं धीरे-धीर सड़क पार करूँगा तो वह बैलगाड़ी आकर मुझे कुचल डालेगी।"
लेबल: तू गुलाब होकर महक