गुरुवार, जनवरी 26, 2023

जब राम तीर्थ ने किया रिजाइन ! ईश्वर साक्षात्कार था कारण

https://youtu.be/49FzyvcX8RI

          मन के मौन से मानसिक शक्तियों का विकास होता है। बुद्धि के मौन से, बुद्धि के मौन से आत्मशक्ति का विकास होता है। जितना बाहर का कम देखना,सुनना,सोचना उतना ही मौन में सफ़लता ज्यादा आसानी से। घर में अथवा कहीं भी साधना की जगह पर एक ऐसा आसान लगा देना चाहिए या तो पूर्व या तो उत्तर की तरफ बैठकर वहां साधन किया जाय और वो साधन तुम्हारी छुपी हुई शक्तियों को जगाने वाला हो और वहां पर वो साधन के परमाणु इकट्ठे हो जाते है। फिर तुम कितने भी बाहर बिखरे हो, थके हो, चंचल हो लेकिन वो साधना की जगह पर जाने से ही शांति और दिव्य विचार, दिव्य परमाणु सहायक बन जाते है। 

          जिसके जीवन में अपने स्थूल शरीर से सर्वहितकारी प्रवृत्ति कर लिया, हृदय से सरल रहे और बुद्धि से किसीका बुरा न सोचे निर्णय करे और लोको से असंग रहे जिससे आत्मशक्ति का खज़ाना बढ़ेगा। मस्तक में १० अरब, १ अरब मे १०० करोड़ होता है, १ करोड़ मे १०० लाख होता है तो १० अरब अपने दिमाग में न्यूरॉन्स है विज्ञानी अभी कहते है लेकिन योगियों ने उन न्यूरॉन्स को, विज्ञानी न्यूरॉन्स कहते है, योगी सूक्ष्म कोष कहते है। एक -एक कोष एक -एक नक्षत्र के प्रतिनिधित्व कर सकता है। उन न्यूरॉन्स में आत्मा की ऊर्जा जितनी अधिक आए उतना ही वो व्यक्ति प्रभावशाली, इस जगत में भी उथल-पुथल कर सकते है । जैसे विश्वामित्रजी उन्होंने मकई बनाई । पहले तो विलासी राजा थे । फिर देखा की संसार में अपनी एनर्जी नष्ट हो रही है । भोग भोगने में संयम किया , मौन रहे, एकांत में रहे, साधना किया, अपनी शक्तियों को एकाकार किया तो फिर उनको मौज आ गई कि ब्रह्माजी ने गेहूं बनाया, जौ बनाया, चावल बनाया तो मैं भी अपनी सृष्टि मैं बनाऊंगा । तो मकई जो है वो विश्वामित्र ने बनाई। मकई है, बाजरी है , ज्वार है, नारियल है ये विश्वामित्र ने बनाया। 
         ईश्वर अगर अपने से अलग मिलेगा तो आधा मिलेगा और मिलेगा तो चला जायेगा। ईश्वर अपने से दूर होगा, अलग होगा और अलग होकर मिलेगा तो आधा मिलेगा, दूर रह जायेगा। तो जिसको भी ईश्वर मिला है तो अपना जीवत्व और ईश्वरत्व में एकाकारता से ईश्वर की पूर्ण अनुभूति होती है। ईश्वरत्व की अनुभूति होती है और ईश्वर के ऐश्वर्य में एकाकार होने के लिए एकाग्रता सामर्थ्य देती है। 

         संसार की जो प्रवृति है, संसार के जो काम है उसमें शक्ति का ह्रास होता है। सुबह उठ कर शांति शक्ति होती है काम करते करते शाम को हय....। तो संसार में और संसार के सुखभोग में शक्ति का ह्रास होता है। ध्यान में और आत्मा की शक्ति का, आत्मा के आनंद-भोग में शक्ति का संचय होता है। तो शक्ति का ह्रास होनेवाला व्यक्ति सुरा-सुंदरी अर्थात सेक्स की और नशे की उसको आवश्यकता लगती है शारीरिक-मानसिक थकान वाले को। लेकिन जो ध्यान करता है उसको सेक्स की, शराब की जरूरत नहीं है, उसका अपना आत्मा का आनंद आता है उससे वो प्रसन्न तो रहता है लेकिन ये १० अरब न्यूरॉन्स है वो भी पुष्ट होते है, उनको भी एनर्जी मिलती रहती है और जो संसार की प्रवृत्ति में ज्यादा लगता है उसकी शक्ति का ह्रास होता है तो फिर शराब और सुंदरी और मादक द्रव्यों से उनके न्यूरॉन्स, सूक्ष्मकण और कुंठित हो जाते है। इसीलिए उनकी योग्यता ऑर्डिनरी साधारण होती है और जो शांत रहते है उनकी योग्यता निखरती है, बढ़ती है। जो ज्यादा नहीं बोलते है तो उनमें मनन करने की शक्ति होती है। जो ज्यादा ठांस-ठांस के नही खाते तो उनको पचाने की शक्ति बरकरार रहती है।जो ज्यादा नबही सोते, ज्यादा नहीं जगते, ज्यादा खर्चाल नहीं और ज्यादा कंजूस नही, इस प्रकार ठीक-ठीक युक्ताहारविहार करते- ऐसे लोग प्रतिदिन चार घंटे अगर साधना के लिए निकाले तो नौकरी-धंधा के लिए जो हाथ फैला रहे, हाथा-जोड़ी कर रहे उसमें तो धना-धन होने लग जाए और ईश्वर प्राप्ति का रास्ता ज्यों-ज्यों आनंद बढ़ता जाए तो वो भी सब फीका हो जाए । फिर तो रामतीर्थ की नाईं है:- "प्रभु अब दो-दो काम नहीं होता । एक तो तेरे आंनद में रहना और फिर प्रोफेसर होकर पढ़ाने जाना । अब दो-दो काम नहीं होते ।" 
       रिजाइन कर दिया, और गहरे उतरे और परमात्मा का साक्षात्कार पूरा कर लिया। ईश्वर से अलग बना था वो भी पूरा हो गया। अमेरिका में गये तो वहां का राष्ट्रपति मिस्टर रूजवेल्ट उनके चरणों में आकर बड़ी शांति, बड़ा ज्ञान पाकर सुख का आनंद का अहसास करता।
        तो जो कम बोलते है और ध्यान करते तो संकल्प विकल्प कम होते है।निश्चयात्मिका बुद्धि रखते तो बुद्धि में भी शांति और असंगता आती है तो फिर वो आत्मा परमात्मा में ठहरती है। जैसे बिल्लोरी कांच ठहरता है तो सूर्य की दाहक शक्ति, प्रकाशिनी शक्ति पदार्थ में प्रवेश हो जाती है ऐसे ही अपना चित्त शांत होता है तो सर्वव्यापक परमेश्वर की सत्ता उसमें अधिक आती है। सूर्य का प्रकाश तो सर्वत्र है लेकिन बिल्लौरी कांच स्थिर होता है तो वहां उसकी दाहक शक्ति। एक बिल्लौरी कांच खड़ा करो तो वहां उसकी दाहक शक्ति लेकिन हजार-लाख-दस लाख बिल्लौरी कांच रख दिए जाएं तो दस लाख जगह पर उसकी दाहक शक्ति प्रकट होगी एक ही सूर्य से । ऐसे दस लाख योगी योग करे तभी भी एक ही सर्वेश्वर परमात्मा की सत्ता से उनमे सामर्थ्य आ जायेगा। दस लाख मिनिस्टर नहीं बन सकते हैं लेकिन दस लाख महापुरुष, दस लाख उत्तम साधक बन सकते है।

      तो आप अपने-अपने घर में उत्तम ढंग की साधना का इरादा पक्का करो। अपने हल्के मन की पसंद का काम करने से वासना बढ़ेगी । न्यूरॉन्स और आपका मन कमज़ोर हो जाएगा। शास्त्र और गुरु के सम्मत साधन करोगे तो वासना मिटेगी। वासना मिटेगी तो बुद्धि में स्थिरता आएगी, मन में चांचल्य कम आएगा, वाणी में संयम आएगा और आपका बल बढ़ेगा । फिर विश्वामित्र की नाईं आप सृष्टि बनाएं इतना बल न भी पाएं कम से कम अपना गृहस्थी जीवन सुख पूर्वक जिए और जीवन की शाम हो, मौत आए उसके पहले मौत जिसकी होती है वो मैं नही हूं, मौत होती है शरीर की और शरीर ऐसे कई मिले और मर गए तो मैं कोन हूं उसको खोजकर उस परमात्मा में एकाकार होने का जम्प मार सके इतना तो काम कर ही लेना चाहिए।

       तो बाहर की बाते कम सुने, कम बोले, कम सोचे और उनकी लालच कम करे। ये आज कल की जो फिल्मी दुनिया और टीवी-बीवी बड़ी हानि करती है। टेलीफोन की सहूलतों ने भी बड़ी हानि कर दी, आदमी को बाहर ले गए, बिखेर दिया। अकेले आए हैं-अकेले जाना है तो अकेले बैठने का अभ्यास करो। अभी हम इधर से गए तो लोकों से थोड़ी मिले, अपने अकेले जगह पे रहे, पुष्ट होके आगए। मिलते रहते तो फिर अभी ऐसा थोड़ी निकलता। तो अकेले में भी आलस्य न हो जाए, मन इधर-उधर न हो जाए तो उच्चारण किया भगवतस्वरूप का, फिर एकाकारता का अभ्यास किया, शास्त्र पढ़े, पढ़ते-पढ़ते, जैसे जीवन रसायन पुस्तक है अथवा गीता है, उपनिषद है थोड़ा पढ़ा और इसमें वैदिक बाते हैं, तत्वज्ञान की, उपनिषदो की बाते है, ऊंची ऊंची बाते मन उर्ध्वगामी हो जाए उसी विचारो में थोड़ी देर शांत.....
दिन में दस बीस बार जीवन रसायन पुस्तक देखे, विचारे इससे मनोबल, बुध्दिबल, संकल्पबल का विकास और साथ साथ में शुद्धिकरण भी होगा फिर आत्मबल में प्रवेश पाने में मदद मिलेगी ये है तो दिखने में जरा सी पुस्तक लेकिन है उपनिषदों का सत्व-सार। ऐसे और भी जो भी आप को अच्छी उपनिषद शास्त्र दिखे। वाणी के मौन से शक्ति, मन के मौन से शांति और बुद्धि के परम मौन से परम पुरुष परमात्मा का साक्षात्कार। एकदम पूर्ण परमात्मा को पाने के लिए आठ चीज़ों की जरूरत है।
एक तो सदाचार, झूठ-कपट-चोरी-बेईमानी हृदय खराब होगा उस को छोड़ दे, सदाचार का व्यवहार करे।

दूसरा सबके हित की सोचे। हितकारी प्रवृत्ति सेवा जितनी हो जाए कर लिया बस...।

तीसरा चरित्र अच्छा रखे। खान-पान या बुरी नजर से किसी स्त्री को, पुरुष को न देखना, ब्रह्मचर्य का थोड़ा-बहुत पालन करना। 
सुख मिल जाए तो उस में अभिमान न करे।
दुख मिल जाए तो ये बेवकूफी न करे कि मैं दुखी हूं।
 *को काहू को नही सुख-दुख करि दाता।* 
 *निज कृत कर्म भोगहि भ्राता* 
अपने ही कर्म के फल आ-आ के चले जाते है। उससे चिपके नही। अपने परमात्म स्वभाव में चिपके रहे। सुख आ के चला जाएगा, दुख आ के चला जाएगा। हम सुख को चिपकते रहते है और दुख से डरते रहते है तो न सुख में निश्चिंत है न दुख में निश्चिंत है। 
 *सुख स्वप्नना दुख बुलबुला* 
 *दोनो है मेहमान* 
इंह ये छो तो करे... ये ऐसा क्यों करता है...ये ऐसा... ये तो दुनिया है। ढिंढोरा होता रहता है। ऐसा क्यों न करे !.....ऐसा ये क्यों करे! क्यू न करे!.....इस झंझट में क्यू पडु!
 *मन तू राम भजन कर जग मरवा दे, नर्क पड़े ने पड़वा दे।* 
इस प्रकार का दृढ़ विचार करके अपने मन को बार बार भगवान में लाए। कभी कभी नही लगे तो पंजों के बल से जैसे ऐसे कीर्तन करते ऐसा थोड़ा किया। फिर बैठे। लंबा उच्चारण करे जितनी देर उच्चारण करे उतना देर शांत हो शांति....आनंद.... 
तो अपना आत्मा परमेश्वर शांत स्वरूप है , आनंद स्वरूप है, सत स्वरूप है। संसार असत स्वरूप है, दुख स्वरूप है और जड़ है। हाथ को पता नहीं मैं हाथ हूं, मकान को पता नही मैं मकान हूं, पैसे को पता नही मैं पैसा हूं लेकिन आप को पता है मैं हूं। पता है ना?....तो आप चेतन हुए। शरीर जड़ है तो आपकी चेतना लेकर शरीर चलता है। तो शरीर को मैं माना और मैं गुजरात। गुजरात को पता नहीं मैं गुजरात हूं हम लोगो ने नाम रखा ये गुजरात, ये महाराष्ट्र, ये यूपी , ये फलाना । तो ये मन की कल्पना से व्यवहार चलता है। तो व्यवहार के लिए कल्पना वाला व्यवहार कल्पना में लेकिन ध्यान के समय कोई कल्पना नहीं। 
ॐ शांति... ईश्वर में हम....

       दांतो के मूल में जीभ की नोक लगा के बैठ गए। आरोग्य के कण भी बनेंगे, श्वासोश्वास गिनेगे तो मन की चंचलता भी मिटेगी। मन शांत होता है, आनंद आता जाए। अभी करो अभ्यास। 
         जो परमात्मा है वो चेतन है, जो परमात्मा है वो ज्ञानस्वरूप है ,जो परमात्मा है आनंद स्वरूप है वो ही आत्मा होकर मेरे इस हृदय में बैठा है तभी शरीर को चेतना मिलती है। उसी से दस अरब न्यूरॉन्स सत्ता पाते है। भीतर से, बाहर से आके ले बैठो। शरीर को मैं मान कर नही बैठो। ये काम करूंगा, ऐसा करूंगा, बाद में ये करूंगा.... छोड़ो। अगड़म-तगड़म स्वाहा। भीतर बाहर से अभी अकेले। हे केशव! नाम लिए अनेक यूपी के, पंजाब के, हरियाणा के लेकिन वास्तव में सब भारत के है और जो अमेरिका और लंडन के है वे भी कुल मिलाकर वास्तव में सब धरती के है और ऐसी कई धरतियां है वो सब प्रकृति की है और प्रकृति है जिस परमात्मा की वो परमात्मा चैतन्य रूप में सर्वत्र होते हुए भी मेरे हृदय में व्याप रहा है। जैसे सूर्य सब जगह होते हुए भी मेरे कटोरे भी दिखता है, आकाश सर्वत्र होते हुए भी मेरे घर में है। आकाश सर्वत्र है मेरे घर में भी है। ऐसे ही सच्चिदानंद परमेश्वर सर्वत्र है और वे मेरे हृदयेश्वर है। 
ॐ शांति और वे मेरे प्रेरक है। आकाश तो जड़ है लेकिन परमात्मा चैतन्य है और मैं सत्कर्म करता हूं और सुबह ध्यान में बैठता हू तो मुझे सत्प्रेरणा भी देते है, मैं सत्संग करता हूं तो सत्प्रेरणा देते है, मैं झूठ बोलता हूं तो मेरे हृदय को टोकते है वे इतने मेरे हितैषी है....हो ना प्रभु!.... हां ना!... हां ना ऐसे करते उनसे दुलार करो।
ॐ शांति..... ॐ आनंद..... ॐ माधुर्य.... ॐ ॐ....... ॐ शांति..... ॐ आनंद 
इस प्रकार चिंतन करते-करते शांति और आनंद में डूबते जाएं। 
रूपं मधुरं, शांति मधुरं, प्रीति मधुरं, मति मधुरं, गति मधुरं, मधुराधिपते मधुरं मधुरं..... ॐ.... ॐ.... बाहर का कोई भी शब्द सुनाई पड़े, कोई भी रूप दिखाई पड़े उसकी इच्छा भी न करो, उसे हटाओ भी नहीं। तुम तो शांति और आनंद में खोते जाओ और उसीके होते जाओ बस। कोई कठिन काम नहीं है । नया-नया है तो कठिन लगता है। भगवान को पाना, अपनी आत्मा का उद्धार करना कोई कठिन काम थोड़े है! कठिन तो संसार का कर-कर के मर जाओ कुछ भी हाथ में नहीं आता। बधु छोड़ी ने मरी जवानु। डॉलर भी यांज मुकी ने जाता रेवानु। डॉलर साथे आवे! थोड़ा ध्यान, पुण्य, आत्मशक्ति तो मौत वखते भी साथे ने साथे। ऐनी प्रैक्टिस वधारे करवी पड़े। काफी लक खुली जाय, भाग खुली जाय। बहु परिश्रम नई करवानु संसार नु। बाहर काम करी ने टायर्ड थया होय ने पछी ध्यान करे तो नई लागे। थोड़ा फ्रेश रेवे। आपणा हाथे बनावेलू भोजन हेल्प करे, मदद करे। रोज नियमित ध्यान करे तो उसी समय मन स्वाभाविक लगता है। भगवान और गुरु और महापुरुषो की मदद मिलती है प्रभात काल को, वातावरण की मदद मिलती है। अभी भी मदद मिल रही है वातावरण में। सभी का एक प्रकार का ध्यान बड़ी मदद मिलती है।
ॐ.... ॐ....
मन में बोलते जाओ। बल, शांति, आनंद 
ॐ....... 
तं नमामि हरिं परम् 
तं नमामि हरिं परम्..... 
तं नमामि हरिं परम् ।
तं नमामि हरिं परम्... 
तं नमामि हरिं परम् । 
तं नमामि हरिं परम्...


हरि ओ.........म......हरि ओ.....म

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