हँसे तो तुरंत एफ़आरआई दर्ज
देल्ही पूनम सत्संग अमृत;
10 दिसंबर 2011 ( सुबह का सत्र)
हरि हरि बोल!
भगवान राम ने बैन लगा दी थी …अयोध्या के पुलिस के नाक में दम कर दिया था इस बैन ने की जो भी हँसे तो तुरंत एफ़आरआई दर्ज कर दो…कोई भी हसता हुआ दिखे तो उस पर एफ़आरआई कर दो..पुलिस के नाक में दम कर दी..सब पर ये क़ानून लागू था. आईजी, डीआईजी , मंत्री , महा मंत्री कोई भी हो..हसेगा तो तुरंत एफ़आरआई दर्ज !
क्यों की राम रावण का युध्द हुआ था तो रावण को शिव जी का वरदान था..रावण ने वरदान माँगा था की मेरा सीर कटे , हाथ कटे तो फिर से लग जाए..शिव जी ने “तथास्तु” बोला था…तो जब राम जी बाण मारते तो रावण के सीर कटे, हाथ कटे…लेकिन कटे हुए सीर आकाश में जाते..हसते हाः हाः हाः… और फिर से नए सीर नए हाथ लग जाते..राम जी फिर बाण से रावण के सीर काटते…लेकिन फिर वो कटे हुए सीर आकाश में जा कर ज़ोर ज़ोर से हसते ..राम जी की मस्करी करते…हाः हाः हाः कर के हसते….
अयोध्या में राज सिंहासन पर राम जी आते ही उत्सव मनाया..खुशी खुशी में कोई हसता तो राम जी को रावण के कटे सीरों की याद दिलाता…तो राम राज्य आते ही राम जी ने पहेला क़ानून पारित कर दिया की अयोध्या में हँसी पर बंदिश लगाई जाती है!..इस का कोई भी उल्लंघन करेगा वो चाहे मंत्री हो, महा मंत्री हो ..चाहे लखन हो,चाहे राम खुद हो (राम जी अपने को राम बोलते) उन पर वो ही क़ानून लगेगा जो प्रजा पर लगेगा…
हँसी पर बैन लगा दी..
1 दिन गुजरा… 5 -25 दिन बीते…. कुछ महीने की कतारे गुज़री…लेकिन हँसी पर बैन लगाई तो प्रजा उदास रहेने लगी..अनुशासन तगड़ा था…उन दिनों ऐसे देस परदेस में पैसे जमा करनेवाले मंत्री तो थे नही राम राज्य में..फिर भी लोग उदास रहेने लगे..परिणाम बहोत विचित्र आया…लोगो की हँसी चली गयी तो लोग मायूस रहेने लगे..अस्वस्थ रहेने लगे..तो लोग अपने ईष्ट देव को पूजने लगे..उस समय प्रजा तो राम जी को भगवान राम नहीं ; राजा राम मानते थे..वर्तमान में भगवान आए तो उस समय लोग उन को
इतना नही मानते जितना जाने के बाद मानते….
शिर्डी वाले साई बाबा भिक्षा माँगने जाते तो लोग हुड दूत करते…दिवाली का दिया जलाने के लिए ज़रा सा तेल भी नही देते..और अभी उन के लिए 10 करोड़ का सिंहासन बनता है !
हम भी जब साधना करते थे तब कहीं भूक लगी तो अहंकार मिटाने के लिए सोचा की अब भिक्षा माँगेंगे…भिक्षा माँगने गये तो माई ने कहा, “शरम नही आती..इतना लाल टमाटर जैसा जवान भिक्षा माँगता है!”
तब हम साडे 22 साल के थे..परसनालिटी थी! अभी भी है! तो तभी कैसे होगी? :) ..तो माई ने सुना दिया की , “पहेली रोटी पर खड़ा हो गया, जा आगे जा !…” तो फिर मेरे मन को बोला की दुख होता है तो अहम को होता है, शरीर को तो पता नही और आत्मा को दुख सुख होता नही..अभी अहम है..तू अहम छोड़ेगा तभी ईश्वर मिलेगा..मन को सिखाने के लिए भिक्षा मांगी..वरना हमारे पिता तो नगर सेठ थे..
तो महाराज राम जी ने आदेश दे दिया की इस क़ानून का पालन हो…तो लोग देवी देवताओं को, संतों को प्रार्थना करने लगे…आख़िर बात पहुँची देवताओ के पास ..और देवताओं के शिरोमणि ब्रम्हा जी तक बात पहुँच गयी..
ब्रम्हाज़ी ने देखा की भगवान राम तो मेरे उदगम स्थान है..अब मैं कैसे चैलेंज करूँ?..थानेदार की बात हो तो एसएसपी चैलेंज कर देगा…
लेकिन सीएम का ऑर्डर आया तो कैसे चैलेंज करेगा…
ब्रम्हा जी ने देखा की भगवान का क़ानून है क्या करे? ..ब्रम्हा जी को एक युक्ति सूझी..
3 प्रकार की दुनिया होती..ये जो दुनिया दिखती उस को आधिभौतिक जगत बोलते..लेकिन ये आँखो से या हाथ पैर से संचालित नही होती..अंदर के आधिदैविक सत्ता से संचालित होती..जैसे कार दिखती लेकिन पहिए अपनी सत्ता से नही घूमते,हॉर्न अपनी सत्ता से नही बजता…अंदर की मशीनरी से संचालित होता है..तो उस को आधिदैविक सत्ता बोलते.. आधिभौतिक पर जिस का प्रभाव चलता है उस को आधिदैविक सत्ता बोलते…व्यक्ति व्यक्ति में आधिदैविक सत्ता है और समष्टी में भी आधिदैविक सत्ता है…व्यक्ति व्यक्ति का आधिभौतिक शरीर है..समष्टी में भी आधिभौतिक है पृथ्वी,जल, तेज, वायु, आकाश आदि सब आधिभौतिक है…तो जो इंद्रियों से दिख जाए, उस को आधिभौतिक कहेते है..लेकिन इंद्रियों से ना दिखे फिर भी आधिभौतिक पर जिस की सत्ता है उस को आधिदैविक बोलते…लेकिन ये सत्ता बदलती रहेती फिर भी जो ना बदले उस को अध्यात्मिक कहेते..
जैसे आप का शरीर बदल गया..बीमारियाँ बदल गयी..दुख सुख बदला…ये आधिभौतिक बदला…लेकिन मन बदला, बुध्दी बदली ये आधिदैविक बदला है… बचपन की बुध्दी अभी नन्ही लगती है..उस समय जो बढ़िया लगता था कोई समझाए फिर भी नही मानते थे..लेकिन अब समझते..तो वो मन बुध्दी बदल गया फिर भी जो नही बदले वो अध्यात्मिक हमारा आत्मा है…
बचपन की बेवकूफी अभी हम मानते है..बचपन के शरीर का बदलाहट (आधिभौतिक) , मन बुध्दी का बदलाहट , सोच विचार का बदलाहट (आधिदैविक) इन को जो जानता है (साक्षी –आत्मा ), जो नही बदला है वो है अध्यात्म …
उस को कही लेने नही जाना पड़ता, उस के पास जाना नही पड़ता..उस को भगाना नही पड़ता…
और वो दूर नही, दुर्लभ नही..लेकिन वो आधिभौतिक और आधिदैविक दोनो का आधार है..
जैसे सभी गहेनों का आधार सोना है..
जैसे तरंग, झाग, बुलबुले सभी का आधार पानी है..
.. ऐसे ही आधिभौतिक और आधिदैविक का जो आधार है वो आत्मा है..इस आत्मा से ही ‘मैं‘ ‘मैं‘..निकलता है..
भगवान है की नही इस में संदेह हो सकता है लेकिन ‘मैं‘ हूँ की नही इस मे संदेह नही हो सकता…तो ये ‘मैं‘पना जहा से स्फुरित होता वो है अध्यात्म!
तो इस अध्यात्म ज्ञान के सिवाय भगवान साथ में है , अर्जुन की घोड़ा गाड़ी चला रहे फिर भी अर्जुन का दुख नही मिटा..
लेकिन भगवान ने जब अध्यात्म ज्ञान दिया तो अर्जुन का सुख मिटा नही और दुख टीका नही…
दुनिया की सारी पढ़ाई कर लो , सारी भौतिकता की उँची शिखरो को सर कर लो..और आधिदैविक जगत की सारी शक्तियां पा लो फिर भी दुख मिटेगा नही.. दुख दबेगा..दुख भूल जाओगे ..लेकिन दुख फिर आएगा..
तो मनुष्य जीवन केवल दुख मिटाने के लिए नही..
सुबह से शाम से आप क्या करते की जो भी करते सुख पाने के लिए और दुख मिटाने के लिए करते…शादी करते तो सुख पाने के लिए, तलाक़ भी देते तो सुख पाने के लिए..जॉब करते तो सुख पाने के लिए और रिटायरमेंट लेते तो भी सुख के लिए.. रिश्वत लेते सुख के लिए और ईमानदारी करते तो भी सुख के लिए..तो जो भी करते सुख पाने के लिए और दुख मिटाने के लिए..
एक डॉक्टर थी..एमडी स्री रोग विशेषग्य थी …एबोरशन करना, खूब पैसा लेना, खाना पीना, मौज करना ऐसा जीवन ..लेकिन सत्संग सुना तो ये छोड़ दिया… तो सब डॉक्टर उस का मज़ाक उड़ाते , उस पर हसते की अब क्या कमाएगी..लेकिन अब उस की 2-2 अस्पताले चलती है..बापू के आशीर्वाद से ये हो गया बोलती ..लेकिन ये तो कुछ भी नही…ये बहोट छोटी चीज़ है.. अध्यात्म तत्व सब का सार है..सब का आधार है..शिव जी इस में ज़्यादा समय टिकते तो शिव जी , ‘महादेव’ है..
अध्यात्म नित्या
विनिवृत्त कामा
द्वंद मुक्ता
सुख दुख संगे ll
अध्यात्म तत्व सब से उँचा है..
मेरे पास कई प्रधानमंत्री आए..कई मुख्या मंत्री आए… बड़े बड़े धनाढ्य लोग आए.. अमेरिका के धनाढ्य भक्त बोले 22 मिलियन डॉलर अर्पण
करेंगे बोले तो मैं अभी तक नही गया..भगवान और सच्चे संतों को पैसो से नही खरीद सकते…तुम्हारी दुनिया कुछ भी महत्व नही रखती..
आप यहा बैठे है ना तो सूरज आप को इतना थाल जैसा दिखता है…लेकिन सूरज थाल जितना नही है..सूरज पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है..लेकिन दूरी के कारण वो छोटा दिखता है…आकाशगंगा मे 400 करोड़ सूरज है.. उस में ये सब से छोटा सूरज अपनी सृष्टि का है जो हम को दिखता है.. वो भी पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है लेकिन हमे दिखता कितना छोटा दिखता है…बहोत दूर है इसलिए हमे छोटा दिखते … 1 सूर्य नीचे आ जाता – है ऐसे 12 सूरज आ जाते तो पृथ्वी सारी बाष्पीभूत हो जाती है …प्रलय हो जाता है ..
तो 4 अरब सूर्य जिस आकाशगंगा में है वो आकाशगंगा आधिदैविक सत्ता से चलती है और उस को सत्ता मिलती है अध्यात्म से…उसी अध्यात्म की सत्ता से तुम्हारे अन्न में से खून बनता है…वो ही अध्यात्म सत्ता से तुम्हारी हमारी सब की नाभि माँ की जेर से जुड़ती है.. ..और माँ की गोद में आते तो माँ के शरीर में उसी अध्यात्म सत्ता से दूध बन जाता है..हम खाने पीने के काबिल होते तो माँ के शरीर में दूध बंद हो जाता है…
तो वो आध्यात्मिक शक्ति बिजली की नाई जड़ नही है..उस में चेतना है..उस में ज्ञान है..और वो प्राणी मात्र की सुहुर्द है….उस में 12 दिव्य शक्तियाँ है…सारी शक्तियों का मूल वो ही है..जितना भी कोई जाने अंजाने आध्यात्मिक शक्ति के करीब आता है उतना उस के जीवन में दिव्यतायेँ आती है..
अब ये चंद्र ग्रहण है..सूर्य और चंद्र तब नही दिखते जब बादलों से ढके होते है…हक़ीकत ये है की बादल सूरज और चाँद को नही ढकते..हमारे आँखो की एरिया में चाँद और सूरज ढका दिखता है..और दूसरी जगह में दिखते है..ऐसे ही वो अध्यात्म सत्ता को कोई ढक नही सकता…वो नित्य हमारे साथ है परमेश्वर सत्ता…लेकिन राग और द्वेष,वासना और बेवकूफी की चदरिया से वो ढकी सी मालूम होती है…फिर भी उस की सत्ता सतत काम कर रही है..
लेकिन अयोध्या में तो अभी भी हँसी की बंदिश चालू है..
राम जी और ब्रम्हाज़ी के बीच का खेल शुरू है..आनंद रामायण में ये कथा आती है…राम जी के राज्य में हँसी पर बंदिश थी वो ब्रम्हाज़ी ने कैसे हटाई ये सुनोगे तो सचमुच आप को हँसी आएगी..
हसने पर बंदिश होने से लोगों की बोझिली जीवनी शैली हो गयी…हाजमा खराब होने लगा..चिड़चिड़ा पन बढ़ गया..लोग भगवान से प्रार्थना करने लगे की हमारे बच्चे,हम अस्वस्थ हो गये ..देवताओं को मानुषी जगत का पता चलता है..देवता के अग्रणी ब्रम्हा जी को भी पता चला…ब्रम्हा जी ने देखा की राम जी का बनाया क़ानून को हटाना है तो क्या करे ?
…ब्रम्हा जी अध्यात्म में चले गये..आधिभौतिक सृष्टि के तो ब्रम्हाज़ी रचेयेता है.आधिदैविक सत्ता के धनी है ही है.. लेकिन इन को जहा से वो सत्ता आती वहा जाना ब्रम्हाज़ी जानते है..जैसे ब्रम्हज्ञानी संत जानते है ऐसे ब्रम्हाजी भी जानते है..तो थोड़ी देर में ब्रम्हा जी के चेहरे पर मुस्कान आई..बोले , “देवता तुम्हारा मंगल होगा..ये समस्या का समाधान मिल गया है..”
तो जहा अयोध्या का जो प्रवेश द्वार था वहा पर एक विशाल पीपल वृक्ष था..आता जाता सभी को दिखाई देता जो भी नगर में प्रवेश करे…ब्रम्हाजी पीपल में प्रविष्ट हो गये…भूत पिशाच प्रविष्ट होते तो ब्रम्हाज़ी के शक्ति के आगे पीपल में प्रविष्ट होना क्या कठिन ?
उस जमाने मे लकड़ियों से गुज़ारा होता था..एक लकड़हारा लकड़ी का बोज़ा उठा के चला..तो ब्रम्हाज़ी पीपल में से हंस पड़े..लकड़हारा चौका..और उस की दबी हुई मानवी हँसी छूट पड़ी…..84 लाख योनियों में केवल मनुष्य के पास हसने की कला है … दूसरे प्राणी नही हस सकते
…और उसी पर राम जी ने बैन लगा दी….
ब्रम्हाज़ी का संकल्प था तो लकड़हारा भी हस पड़ा…हस पड़ा लेकिन कौन हसा रहा है दिखता नही..अरे भाई कौन हो?.. कौन हो कौन हो, करते हुए हसते जाए.. हसते जाए..सामने से कोई दिखे नही तो ताज्जुब लगे…ताज्जुब करते हसते हसते आगे गया तो गाव का कोतवाल मिला…कोतवाल को हसते हसते बोला की पीपल के पास हँसी की आवाज़ आ रही..
कोई हस रहा था दिखाई नही दे रहा..
कोतवाल बोला, ‘लेकिन हसना मना है..‘
लकड़हारा बोला, हाँ पता है ..लेकिन क्या करू?
क्या करू..क्या करू..करते करते कोतवाल भी हसने लगा.. संक्रामक बीमारी जैसे फैलती ऐसे ये हँसी फैलते गयी… कोतवाल हासे तो उस का ऑफीसर
हासे..ऐसे करते करते थाने वाले आए.. एसपी , आईजी , डीआईजी सब हसने लगे..मंत्री, महा मंत्री तक ये हँसी पहुँच गयी…
अब एफ़आईआर किस पर लगाओगे? लकड़हारे पर लगाओगे तो फिर सब पर लगाने पड़ेगी ..राम जी का आदेश है..पूरे प्रजा में हँसी हँसी हँसी फैल
गयी..
आख़िर वो हँसी महा मंत्री से राम जी तक पहुँची…
महा मंत्री बोले,
‘प्रभु अयोध्या में ना जाने कौन सी हवा आई की आप की आज्ञा क़ानून पैरो तले कुचल के सभी हंस रहे..
राम जी बोले, ‘सिपाही क्या कर रहे?’
बोले , ‘वो खुद ही हस रहे‘…
सिपाहियों पर क़ानूनी कारवाही होनी चाहिए…3 स्टार वाले कहाँ गये?…
बोले वो भी हस रहे …सारे के सारे हसने लग गये..
राम जी बोले, ‘सुमंत जाओ… किस ने अवग्या की है?..राज अवग्या राज द्रोह माना जाता है ..‘
सुमंत भी हस रहे थे..बोले, ‘प्रभुजी राज द्रोह सभी ने किया है … लेकिन मैं भी अद्रोही नही हूँ‘
‘ज़्यादा बात मत करो… लखन और भरत युध्द की तैयारी से जाओ…जहां से हँसी आई उस को ख़तम करो..‘
लखन भरत गए …. जाँच करते करते पता चला की सब से पहेले लकड़हारा हंसा था..लकड़हारा से इंक्वाइरी की….उस ने बोला पीपल से हँसी निकली थी…पीपल के पास गये..इस पीपल से हँसी निकली थी?.. बोले ‘हाँ‘..
‘हाँ‘ बोलते ही पीपल से फिर हँसी निकली..लक्ष्मण और भरत भी हसने लगे..
भरत बोले, अरे लक्ष्मण तुम क्यो हसते?
बोले, ‘भरत तुम क्यो हसा रहे?’
सभी हसने लगे..अब क्या करे?…
सेनापति, मंत्री जो भी आए सभी हसने लग जाए…
अब करे तो क्या करे?क्या उपाय है?
आख़िर राम जी के पास एक ही उपाय बचा..राम जी ने कहा, ‘पवन सूत जाओ … अपनी गंभीरता का परिचय दो!..अयोध्या नरेश की आज्ञा है..कोई हासेगा नही..जो ऐसे वैसे है उन को अलग कर दो‘
हनुमान जी गये…हनुमान जी ने देखा की हँसी वहा से आ रही है..हनुमान जी को भी हँसी आ रही थी..लेकिन हँसी को रोका…अपना बल लगाया… हसीं दबा के जैसे ही आगे बढ़े हनुमानजी मूर्छित हो गये..
क्यो? की वायु देवता तो ब्रम्हाजी के बेटे लगते है..वायु देवता का पुत्र हनुमानजी के तो ब्रम्हाजी दादा लगते..दादा के सामने आँख दिखाता है? ब्रम्हाजी अंदर से थोड़ा आँख दिखाते ही हनुमान जी मूर्छित हो गये..
‘प्रभुजी प्रभुजी हनुमान जी भी मूर्छित हो गये…‘
राम जी बोले, ‘तो आख़िर वो हसने वाला कौन पुरुष है?..’
राम जी बोले , ‘रथ तैयार करो..हम स्वयं जाएँगे‘
राम जी स्वयं पीपल के पास गये…ब्रम्हाजी हाथ जोड़ कर प्रगट हुए और राम जी की स्तुति गाने लगे..हसने लगे..
तो राम जी भी हसने लगे ..अब सज़ा दे तो किस को दे कौन दे?
ब्रम्हाजी प्रगट हो कर राम जी की स्तुति किए..हाथ जोड़ कर बताए की आप के राज्य की प्रजा के स्वास्थ्य के लिए हसी जैसी दूसरी औषधि नहीं थी..
राम जी ने हसी पर की बंदिश हटा दी…
हरि ओम ओम ओम ओम ओम प्रभुजी ओम..प्यारे जी ओम आनंद ओम हा हा हा
पूज्यश्री बापूजी के पावन कर कमलो द्वारा आनंद सुख शांति की ज्योतियों का प्रागट्य हुआ… पूज्यश्री बापूजी ने धारण की हुई किशमिश की माला जमनापार समिति को देते हुए पूज्यश्री बापूजी बोले, “अब ये ज्योत आप के घरों में भक्ति, ज्ञान , आरोग्य,प्रीति और सुख शांति का उजाला करेगी..जहां पाठ होगा वहां ये प्रसाद बटेगा..”
लोग बोलते है की जमानापार का वातावरण ऐसा है की,
नानक दुखिया सब संसार
ताते अधिक दुखिया जमुनापार!
लेकिन अभी उस सूत्र को हटाना पड़ेगा…
दुखिया सब संसार..
ज्योत के द्वारा
हुआ सुखिया जमुनापार !