संग की बलिहारी है
संग की बड़ी बलिहारी है । संग की बड़ी महिमा है। संग तार देता है और कुसंग डूबा देता है। इसीलिए संग करने के पहले जरा सोचना चाहिए कि आपके रास्ते का संग कर रहे हो कि आपसे गिरते हुए व्यक्तियों का संग कर रहे हो। गिरते हुए व्यक्ति आपके संपर्क में आए तो हरकत नहीं लेकिन आप उनके संग से रंगे नहीं जाना। गुरुदेव बार-बार कहा करते थे- "गुलाब के फूल बनना।"
गुलाब का फूल कंदोई की दुकान पर रखो, खांड वाले के दुकान पर रखो, गुड़ वाले की दुकान पर रखो, कपड़े वाले के दुकान पर रखो, अरे निदान घी वाले की दुकान पर रखो, सब जगह से घुमाकर आओ, फिर सूंघोगे तो किसी का रंग उस पर चढ़ेगा नहीं, किसी की बू उस पर आयेगी नहीं, गुलाब अपनी खुशबू देगा। ऐसे ही साधक अपने ईश्वर की तरफ के रंग से और रंगो को चढ़ने ना दे।
"तू गुलाब होकर महक तुझे जमाना जाने"।
जैसे गुलाब निर्लिप्त रहता है, ऐसा तू निर्लिप्त होकर महक तो तुझे जमाना जाने! -ऐसा महापुरुषों का कहना है।