बापू तो बापू ही है। ये आँधी अभी नहीं आई ऐसी कई बार आई है।
गांधीजी का आश्रम और अपना आश्रम उसी लाइन में लगता है।
तो हम ऐसे तो कई भक्तों के लिए, तो उनसे मिलने के लिए अथवा कईयों को सत्संग देने के लिए तो जेल में गए लेकिन अभी इन आरोपों के बहाने हम बोलेंगे पहले हम ही आते है भाई चलो।
अगर थाणे पर बैठ जाएं, पहले हमको लो। उधर का भी मजा लेते आएंगे क्या फर्क पड़ता है! पाप करना बुरा है, गलती करना बुरा है लेकिन झूठ-मूठ में कोई निंदा करता है या झूठ-मूठ में जेल मिलता है तो नानकजी भी तो जाकर आए थे, नानकजी को भी जेल हुई थी। तो क्या नानकजी अपराधी थोड़े थे! और चमके। अपन और चमक के आ जाएंगे क्या फर्क पड़ता है।
जयेंद्र सरस्वती को भी जेल में डाल दिया था तो और चमके । अब वो साजिश वाले क्या-क्या साजिश कर रहे हैं, मैं तैयार बैठा हूं। बहुत बहुत तो जेल जाना है। क्या खयाल है? तैयार हो! हां.. लेकिन फिर जेल भेजनेवालों को भी प्रकृति क्या करेगी वह फिर प्रकृति का विधान लेंगे, समझ जाएंगे । निर्दोष को कोई सताता है तो उसके ऊपर भी कुदरत का नाराजी होती है। नारायण हरि... नारायण हरि... ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... वासुदेवाय... प्रीतिदेवाय... भक्तिदेवाय... माधुर्यदेवाय... ममदेवाय... प्रभुदेवाय... ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... ॐ नमो भगवते वासुदेवाय...
वो साजिश करने वाले अगर मेरे को जेल में भेजते हैं तो जेलवालों का तो भला हो जाएगा। मेरा कुछ बिगड़ता वाला नहीं। मेरा बिगड़ जाएगा कुछ?
अरेऽऽऽऽ मेरे को तो गुरुजी ने वो ज्ञान दे रखा है कि सारी दुनिया के लोग उलटे होकर भी कुछ भी कर ले और शरीर का टुकड़ा-टुकड़ा हो जाए फिर भी मेरा कुछ नहीं बिगड़ता, मैं आकाश से भी सूक्ष्म, चिदाकाश ब्रह्म वपु... चिद्-घन चैतन्य का क्या बिगड़ता है! और शरीर का सुधर-सुधर कर कब तक सुधरता है, एक दिन तो इसको जलना-मरना है, गड़ना है। मैं शरीर नहीं हूं। आप जो देखते हैं मुझे मैं वो मैं उतना ही नहीं हूं, वो ही नहीं हूं। अनंत-अनंत ब्रह्मांड जिसमें फुरफुराकर लीन हो रहे हैं मैं वो चैतन्य हूं। अएऽऽऽऽऽ हएऽऽऽऽऽ ।
नारायण... यह सत्रहवीं बार आया हूं तुम लोगों के बीच 16 बार पहले आ चुका हूं । सत्रहवीं बार आया हूं तन लेकर। नहीं तो सोचो! तीसरी पढ़ा हुआ और ऐसा कर सकता है? बताओ जरा! सोचने की बात है, तीसरी पढ़ा हुआ व्यक्ति इतना कुछ कर सकता है क्या परिवर्तन! प्रत्यक्ष बात है। कैसी-कैसी कहानी बनाते हैं कैसा कैसा लेख लिखते हैं, कैसी-कैसी बात! पढ़ते है तो अपने को आश्चर्य होता है । वो अपने मन का ही नमन... फिर बोलते हैं आश्रम का एक आदमी ने हमको यह बताया है।
वो लिखने वाले और बोलने वाले कुछ भी... आश्रम के ये.. वो... ऐसा है, वैसा है ऐसी ऐसी कहानी और नमन करते हैं गंदगी कि पढ़ने वाले को लगे कि अरररररररर आश्रम में ऐसा है अरररररररर ऐसा करते हैं, ऐसे हैं... इस बहाने भी देखने को आएंगे और मेरे को देखने के बाद सबको हो जाएगा कि बापू तो बापू ही है। ये आँधी अभी नहीं आई ऐसी कई बार आई है।
