जीव-सेवा ही शिव-सेवा - पूज्य बापूजी
जीव-सेवा ही शिव-सेवा
स्वामी श्रीकृष्णबोधाश्रमजी महाराज एक बड़े ही उच्चकोटि के वीतराग ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष थे । एक बार वे कुछ ब्रह्मचारियों को लेकर कुरुक्षेत्र गये । दैवयोग से उन दिनों कुरुक्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वर्षा न होने के कारण सूखा पड़ गया था। जलाभाव के कारण चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था । पशु-पक्षी भी पानी न मिलने के कारण प्यास से मरने लगे थे । सर्वत्र चिंता व्याप्त थी। स्वामीजी एक देवमंदिर में ठहरे हुए थे । वहाँ उन्होंने एक अत्यंत करुणाजनक दृश्य देखा । मंदिर के पास एक बहुत बड़ा तालाब था । उस तालाब के एक छोटे-से गड्ढे में बहुत थोड़ा पानी रह गया था । पानी न होने के कारण तालाब की हजारों मछलियाँ मर चुकी थीं तथा शेष बची हजारों मछलियाँ उस गड्ढे के थोड़े-से पानी में एक जगह एकत्रित हो गयी थीं और पानी के अभाव में छटपटा रही थीं। ऊपर से बड़ी तेज गर्मी पड़ रही थी । गड्ढे का पानी भी एक-दो दिन में सूखनेवाला था । ऐसा होने पर बाकी बची वे हजारों मछलियाँ भी तड़प-तड़पकर मर जाती । स्वामीजी से यह करुणाजनक दृश्य नहीं देखा गया । वे व्याकुल हो उठे और किस प्रकार इन मछलियों के प्राण बचाये जायें, इस पर विचार करने लगे ।
स्वामीजी के आने का शुभ समाचार सुनकर अनेक लोग उनके दर्शन के लिए आये और सबने करबद्ध होकर एक ही प्रार्थना की कि "महाराज ! बहुत दिनों से वर्षा न होने के कारण को बड़ा नुकसान पहुँच रहा है । तालाब और कुएँ आदि का जल भी सूख गया है । अब तो पशु-पक्षी सभी पानी के बिना मरने लगे हैं । आप ऐसा उपाय बताने की कृपा करें कि वर्षा हो जाय और सबको सुख-शांति प्राप्त हो ।"
स्वामीजी बोले "भाई भगवान की कृपा चाहते हो तो उन्हें प्रसन्न करो । वे ही तुम्हारे ऊपर कृपा कर वर्षो करके तुम्हारा दुःख दूर करेंगे ।" "महाराजजी ! क्या किया जाय, जिससे भगवान प्रसन्न होकर हम पर कृपा करें ? आप इसका कोई उपाय बतायें ।
"भगवान को प्रसन्न करने का तात्कालिक उपाय यही है कि तुम यहाँ के जीवों पर कृपा करो, तभी भगवान तुमसे प्रसन्न होकर तुम्हारे ऊपर कृपा करेंगे ।"
"महाराज ! हममें इतना सामर्थ्य कहाँ है कि यहाँ के जीवों पर कृपा करें । हम तो सर्वथा असमर्थ हैं ।"
"हम तुम्हें भगवान को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त करने का ऐसा ही साधन बतायेंगे, जो तुम कर सकोगे ।"
"महाराज ! आप आज्ञा दीजिये, हम उसका अवश्य पालन करेंगे ।"
स्वामीजी ने सामने के उस सूखे तालाब की ओर संकेत करके कहा: "देखो, उस तालाब का सारा पानी सूख गया है, जिसके कारण हजारों मछलियाँ मर चुकी हैं और बाकी जीवित बची मछलियाँ उस छोटे-से गड्ढे के जल में एक जगह इकट्ठी होकर पानी के बिना छटपटा रही हैं । यदि इन्हें जल देकर इनकी रक्षा नहीं की गयी तो एक-दो दिन में ही ये भी जल के बिना तड़प- तड़पकर प्राण दे देंगी ।"
आतुरता एवं उत्सुकतावश गाँववालों ने एक स्वर में कहा : "महाराजजी ! हम क्या करें ?"
"तुम इनके ऊपर कृपा करो तो भगवान स्वयं तुम्हारे ऊपर कृपा करेंगे । इन मछलियों के लिए जल लाकर इस तालाब में डालो।"
"महाराजजी ! जल तो है ही नहीं, फिर लायें कहाँ से ?"
गाँववालों की यह बात सुनकर स्वामीजी स्वयं उठे और पास के कुएं पर पड़ी बाल्टी को लटकाकर जल खींचने को उद्यत हो गये । यह देख सभी गाँववाले स्तब्ध रह गये । फिर क्या था, तत्काल गाँववालों ने कुएं में से जल निकाल-निकालकर उस तालाब में डालना शुरू किया । अब तो जिसे देखो वह पानी लिये दौड़ रहा था । कोई बाल्टी में, कोई घड़े में तो कोई कनस्तर में जल ले जाकर तालाब में छोड़ने लगा । अब तालाब में जल-ही- जल दिख रहा था । मछलियों का छटपटाना बंद हो गया था, उनके प्राणों की रक्षा जो हो गयी थी।
मछलियों के प्राण-रक्षारूपी इस यज्ञ से भगवान गाँववालों पर अत्यंत प्रसन्न हुए और तत्काल एक अद्भुत चमत्कार हुआ । कई दिनों से जो आकाश बिल्कुल साफ था और बादल नाम को भी नहीं थे, वह आकाश सबके देखते-देखते एकदम बादलों से भर उठा । मेघों का गरजना और विद्युत का चमकना शुरू हो गया तथा मूसलधार वर्षा होने लगी । देखते-ही-देखते चारों ओर जल- ही जल भर गया । चारों ओर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी । उस क्षेत्र के सूखा पीड़ित लोगों की खुशी का कोई ठिकाना न रहा । सभी गाँववाले स्वामीजी के चरणों में गिर पड़े और कहने लगे :
"महाराजजी ! आपका यह कहना कि 'तुम यहाँ के जीवों पर कृपा करो तो तुम्हारे ऊपर भगवान कृपा करेंगे ।' यह बात अक्षरशः सत्य निकली । आज हम लोगों ने यह प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि 'जीव प्रसन्नता ही भगवत्प्रसन्नता है, जीव-सेवा ही शिव-सेवा है। अतः प्राणिमात्र को भगवान ही मानकर उनकी सेवा करनी चाहिए ।"
ऋषि प्रसाद नवंबर 2010
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