संकल्पशक्ति का विकास कैसे करें ? -पूज्य बापूजी
साधना आलोक
संकल्पशक्ति का विकास कैसे करें ?
सभी परिस्थितियों का सदुपयोग करें। प्रत्येक स्थान व अवस्था मे अपनेको प्रसन्न रखने का स्वभाव बनायें। इससे आपके व्यक्तित्व में बल और तेज उतरेगा ।
संकल्प का शुद्ध और अप्रतिहत (अखंडित) अभ्यास किया जाय तो अद्भुत कार्य भी सिद्ध किये जा सकते हैं । बलवती इच्छावाले व्यक्ति के लिए इस संसार में कुछ भी असंभव नहीं है । वासना से संकल्प अशुद्ध और निर्बल हो जाता है । इच्छाओं को वश में करने से संकल्पशक्ति बढ़ती है । इच्छाएँ जितनी कम हो संकल्प उतना ही बलवान होता है । मनुष्य के भीतर कई प्रकार की मानसिक शक्तियाँ हैं, जैसे- धारणाशक्ति, विवेकशक्ति, अनुमानशक्ति, मनःशक्ति, स्मृतिशक्ति, प्रज्ञाशक्ति आदि । ये सभी संकल्पशक्ति के विकसित होने पर पलक मारते ही काम करने लग जाती हैं ।
ध्यान का नियमित अभ्यास, सहिष्णुता, विपत्तियों में धैर्य, तपस्या, प्रकृति-विजय, तितिक्षा, दृढ़ता तथा सत्याग्रह और घृणा, अप्रसन्नता व चिड़चिड़ाहट का दमन - ये सब संकल्प के विकास को सुगम बनाते हैं । धैर्यपूर्वक सबकी बातें सुननी चाहिए । इससे संकल्प का विकास होता है तथा दूसरों के हृदय को जीता जा सकता है ।
विषम परिस्थतियों की शिकायत कभी न करें । जहाँ कहीं आप रहें और जहाँ कहीं आप जायें, अपने लिए अनुकूल मानसिक जगत का निर्माण करें । सुख और सुविधाओं के उपलब्ध होने से आप मजबूत नहीं बन सकते । विषम और अनुपयुक्त वातावरण से भागने का प्रयत्न न करें। भगवान ने आपकी त्वरित उन्नति के लिए ही आपको वहाँ रखा है । अतः सभी परिस्थितियों का सदुपयोग करें । किसी भी वस्तु से अपने मन को उद्विग्न न होने दें । इससे आपकी संकल्पशक्ति का विकास होगा । प्रत्येक स्थान व अवस्था में अपनेको प्रसन्न रखने का स्वभाव बनायें । इससे आपके व्यक्तित्व में बल और तेज उतरेगा ।
मन की एकाग्रता का अभ्यास संकल्प की उन्नति में सहायक है । मन का क्या स्वभाव है इसका अच्छी तरह से ज्ञान प्राप्त कर लें । मन किस तरह इधर-उधर घूमता है और किस प्रकार अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है - यह सब भली-भाँति हृदयंगम कर लें । मन के चलायमान स्वभाव को वश में करने के लिए आसान और प्रभावकारी तरीके खोज लें । व्यर्थ की बातचीत सदा के लिए त्याग दें। सभीको समय के मूल्य का ज्ञान होना चाहिए। संकल्प में तेज तभी निखरेगा, जब समय का उचित उपयोग किया जाय । व्यवहार और दृढता, लगन व ध्यान, धैर्य तथा अप्रतिहत प्रयत्न, विश्वास और स्वावलम्बन आपको अपने सभी प्रयासों में सफलता प्राप्त करायेंगे ।
आपको अपने संकल्पों का व्यवहार योग्यतानुसार करना चाहिए, अन्यथा संकल्प क्षीण हो जायेगा, आप हतोत्साहित हो जायेंगे । अपना दैनिक नियम अथवा कार्य-व्यवस्था अपनी योग्यता के अनुसार बना लें और उसका सम्पादन नित्य सावधानी से करें । अपने कार्यक्रम में पहले-पहल कुछ ही विषयों को सम्मिलित करें। यदि आप अपने कार्यक्रम को अनेकों विषयों से भर देंगे तो न उसे निभा सकेंगे और न लगन के साथ दिलचस्पी ही ले सकेंगे । आपका उत्साह क्षीण होता जायेगा । शक्ति तितर-बितर हो जायेगी । अतः आपने जो कुछ करने का निश्चय किया है, उसका अक्षरशः पालन प्रतिदिन करें।
विचारों की अधिकता संकल्पित कार्यों में बाधा पहुँचाती है इससे भ्रान्ति, संशय और दीर्घसूत्रता का उदय होता है । संकल्प की तेजस्विता में ढीलापन आ जाता है । अतः यह आवश्यक है कि कुछ समय के लिए विचार करें फिर निर्णय करें । इसमें अनावश्यक विलम्ब न करें। कभी-कभी सोचते तो हैं पर कर नहीं पाते । उचित विचार और अनुभवों के अभाव में ही यह हुआ करता है । अतः उचित रीति से सोचना चाहिए और उचित निर्णय ही करना चाहिए, तब संकल्प की सफलता अनिवार्य है । किंतु केवल संकल्प ही किसी वस्तु की प्राप्ति में सफल नहीं होता । संकल्प के साथ निश्चित उद्देश्य को भी जोड़ना होगा । इच्छा या कामना तो मानस सरोवर में एक छोटी लहर सी है परंतु संकल्प वह शक्ति है जो इच्छा को कार्यरूप में परिणत कर देती है । संकल्प निश्चय करने की शक्ति है।
जो मनुष्य संकल्प-विकास की चेष्टा कर रहा है, उसे सदा मस्तिष्क को शांत रखना चाहिए । सभी परिस्थितियों में अपने मन का संतुलन कायम रखना चाहिए । मन को शिक्षित तथा अनुशासित बनाना चाहिए। जो व्यक्ति मन को सदा संतुलित रखता है तथा जिसका संकल्प तेजस्वी है, वह सभी कार्यों में आशातीत सफलता प्राप्त करेगा ।
अनुद्विग्न मन, समभाव, प्रसन्नता, आन्तरिक बल, कार्य सम्पादन की क्षमता, प्रभावक व्यक्तित्व, सभी उद्योगों में सफलता, ओजपूर्ण मुखमंडल, निर्भयता आदि लक्षणों से पता चलता है कि संकल्पोन्नति हो रही है।
ऋषि प्रसाद अगस्त 2006
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