शनिवार, जुलाई 24, 2010

गुरु पूनम कैसे मनाएँ ?


भगवान कहते है शब्दों में ओंकार मै हूँ सभी मंत्रो में, सभी मजहबों में ओंकार की महानता का फायदा उठाने का प्रयास किया गया है मुसलमानों ने ओंकार को आमीन आमीन करके उसके दूसरे रूप बनाकर फायदा लिया एक ओंकार करके सिक्ख भाईयों ने फायदा लिया गुरुओं ने फायदा लिया तो ॐ नमो भगवते वसुदेवाय करके वैष्णवों ने फायदा लिया ॐ नमः शिवाय करके शैवों ने फायदा लिया ओंकार की महिमा सभी धर्मों ने, सभी संप्रदायों ने स्वीकार की है जो रक्षण करता है संसार का, उस परब्रह्म का नाम स्वाभाविक ओंकार है जो संसार को गति देता है, रक्षण करता है, गति देता है और सर्वकाल सदा रहता है प्रलय के बाद भी जो ज्यों का त्यों रहता है उस सच्चिदानंद को अकाल पुरुष वादी उसे अकाल कहते है सांख्यवादी उसे पुरुष कहते है भगवतवादी उसे भगवान कहते है प्रीतिवादी उसे प्रेमास्पद कहते है उस परमेश्वर की स्वाभाविक ध्वनि ओंकार है ओर सारे शब्द आहत से पैदा होते है ओंकार अनहद है टकराव से नहीं बेटकराव सहज स्फुरित होता है रक्षण सत्ता संहारक सत्ता पोषक सत्ता निर्णायक सत्ता कारुणि सत्ता, रूप लावण्य और कांति सत्ता, प्रकाश सत्ता, प्रीति सत्ता तृप्ति सत्ता, अवगमन सत्ता, जीव मात्र का जिगरी जान सर्वोपरि जो सतचित्त आनंद स्वरूप है जो स्थूल शरीर मे सूक्ष्म शरीर मे कारण शारीर मे पूरा समाया है और इनके बदलने के बाद भी जिसका कतई बाल बांका नहीं होता वह आत्म स्वरूप ब्रम्हा को विष्णु को शिव को और देवी देवताओं को ऋषि मुनियो को जति जोगियों को सामर्थ्य देता है और फिर भी जिसके सामर्थ्य मे तनिक भी कमी नहीं आती जो पूर्णमद: है और जिससे उत्पन्न हुआ उसके संकल्प से वह भी पूर्ण सा भासता है और बहुत सारा उसमे समा जाए फिर भी पूर्ण रहता है ऐसे परमात्मा को हम प्रणाम करते है और ऐसे परमात्मा का ज्ञान देने के लिए सतगुरुओं को, व्यासों को प्रणाम करते है व्यास पुर्णिमा के उत्सव निमित्त साधक को पुर्णिमा को व्रत करना चाहिए और वह व्रत तब तक बना रहे जब तक की उस सच्चिदानंद परमात्मा की ठीक से स्नेहमई पुजा सम्पन्न नहीं हो जाती अष्टसात्विक भाव मे से कोई भाव प्रगट हो जाए तो समझ लेना की हमारा पूजन स्वीकार हो गया | बापूजी के श्रीमुख से सुनिए इस लिंक पर :  
http://cid-15661c003f6d3487.office.live.com/self.aspx/.Public/Gurupunam%20kaise%20manayen.mp3

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