गुरुवार, जुलाई 29, 2010

दोषों को भगाने की युक्तियाँ

जिन कारणों से आपकी साधना में रुकावटें आती हैं, जिन विकारों के कारण तुम गिरते हो, जिस चिन्तन तथा कर्म से आपका पतन होता है, उनको दूर करने के लिए प्रात:काल सूर्यादय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हो, पूर्वाभिमुख होकर आसन पर बैठ जायें । अपने इष्ट या गुरुदेव का स्मरण करके उनसे स्नेहपूर्वक मन ही मन बातें करें । बाद में 10-15 गहरे श्वास लें और ‘हरि ॐ’ का गुंजन करते हुए अपनी दुर्बलताओं को मानसिक रुप से सामने लायें और ॐकार की पवित्र गदा से उन्हें कुचलते जायें ।

अगर बार बार बीमार पड़ते हो तो उन बीमारियों का चिन्तन करके उनकी जड़ को ही ॐ की गदा से तोड़ डालें । बाद में बाहर से थोड़ा बहुत उपचार करके उनकी डालियों और पत्तों को भी नष्ट कर डालें । अगर काम-क्रोधादि मन की बीमारियाँ हैं तो उन पर भी ॐकार की गदा का प्रहार करें ।

की हुई गलती फिर से न करे, तो आदमी स्वाभाविक ही निर्दोष हो जाता है । की हुई गलती फिर से न करना यह बड़ा प्रायश्चित है । गलती करता रहे और प्रायश्चित भी करता रहे तो इससे कोई ज्यादा फायदा नहीं होता । इससे तो फिर अंदर में ग्रंथि बन जाती है कि “मैं तो ऐसा ही हूँ ”

कोई भी गलती दुबारा न होने दो । सुबह नहा धोकर पूर्वाभिमुख बैठकर या बिस्तर में ही शरीर खींचकर ढीला छोड़ने के बाद यह निर्णय करो कि “मेरी अमुक-अमुक गलतियाँ हैं, जैसे कि, ज्यादा बोलने की । ज्यादा बोलने से मेरी शक्ति क्षीण होती है ”
वाणी के अति व्यय से कईयों का मन पीड़ित रहता है। इससे हानि होती है ।

अपना नाम लेकर सुबह संकल्प करो। यदि आपका नाम गोविंद है तो कहो: “देख गोविंद ! आज कम से कम बोलना है । वाणी की रक्षा करनी है । जो ज्यादा और अनावश्यक बोलता है उसकी वाणी का प्रभाव क्षीण हो जाता है । जो ज्यादा बोला करता होगा वह झूठ जरुर बोलता होगा, पक्की बात है । कम बोलने से, नहीं बोलने से, असत्य भाषण और निन्दा करने से हम बच जायेंगे । राग-द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध व अशांति से भी बचेंगे । न बोलने में छोटे-मोटे नौ गुण हैं । इस प्रकार मन को समझा दो । ऐसे ही यदि ज्यादा खाने का या कामविकार का या और कोई भी दोष हो तो उसे निकाल सकते हैं ।

साधक को कैसा जीवन जीना, क्या नियम लेना, किन कारणों से पतन होता है, किन कारणों से वह भगवान और गुरुओं से दूर हो जाता है और किन कारणों से भगवत्तत्व के नजदीक आ जाता है - इस प्रकार का अध्ययन, चिंतन, बीती बात का सिंहावलोकन व उन्नति के लिए नये संकल्प करने चाहिए ।

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