रविवार, मई 27, 2018

गुरु आज्ञापालन में शिष्य दृढ़ हो तो प्रकृति अनुकूल हो जाती है

संत श्री आसारामजी बापू का मधुर संस्मरण

एक बार नैनीताल में गुरुदेव (स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज) के पास कुछ लोग आये। वे 'चाइना पीक' (हिमालय पर्वत का एक प्रसिद्ध शिखर देखना चाहते थे। गुरुदेव ने मुझसे कहाः "ये लोग चाइना पीक देखना चाहते हैं। सुबह तुम जरा इनके साथ जाकर दिखा के आना।"

मैंने कभी चाइना पीक देखा नहीं था, परंतु गुरुजी ने कहाः "दिखा के आओ।" तो बात पूरी हो गयी।

सुबह अँधेरे-अँधेरे में मैं उन लोगों को ले गया। हम जरा दो-तीन किलोमीटर पहाड़ियों पर चले और देखा कि वहाँ मौसम खराब है। जो लोग पहले देखने गये थे वे भी लौटकर आ रहे थे। जिनको मैं दिखाने ले गया था वे बोलेः "मौसम खराब है, अब आगे नहीं जाना है।"

मैंने कहाः "भक्तो ! कैसे नहीं जाना है, बापूजी ने मुझे आज्ञा दी है कि 'भक्तों को चाइना पीक दिखाके आओ' तो मैं आपको उसे देखे बिना कैसे जाने दूँ?"

वे बोलेः "हमको नहीं देखना है। मौसम खराब है, ओले पड़ने की संभावना है।"

मैंने कहाः "सब ठीक हो जायेगा।" लेकिन थोड़ा चलने के बाद वे फिर हतोत्साहित हो गये और वापस जाने की बात करने लगे। 'यदि कुहरा पड़ जाय या ओले पड़ जायें तो....' ऐसा कहकर आनाकानी करने लगे। ऐसा अनेकों बार हुआ। मैं उनको समझाते-बुझाते आखिर गन्तव्य स्थान पर ले गया। हम वहाँ पहुँचे तो मौसम साफ हो गया और उन्होंने चाइनाप देखा। वे बड़ी खुशी से लौट और आकर गुरुजी को प्रणाम किया।

गुरुजी बोलेः "चाइना पीक देख लिया?"

वे बोलेः "साँई ! हम देखने वाले नहीं थे, मौसम खराब हो गया था परंतु आसाराम हमें उत्साहित करते-करते ले गये और वहाँ पहुँचे तो मौसम साफ हो गया।"

उन्होंने सारी बातें विस्तार से कह सुनायीं। गुरुजी बोलेः "जो गुरु की आज्ञा दृढ़ता से मानता है, प्रकृति उसके अनुकूल जो जाती है।" मुझे कितना बड़ा आशीर्वाद मिल गया ! उन्होंने तो चाइना पीक देखा लेकिन मुझे जो मिला वह मैं ही जानता हूँ। आज्ञा सम नहीं साहिब सेवा। मैंने गुरुजी की बात काटी नहीं, टाली नहीं, बहाना नहीं बनाया, हालाँकि वे तो मना ही कर रहे थे। बड़ी कठिन चढ़ाईवाला व घुमावदार रास्ता है चाइना पीक का और कब बारिश आ जाये, कब आदमी को ठंडी हवाओं का, आँधी-तूफानों का मुकाबला करना पड़े, कोई पता नहीं। किंतु कई बार मौत का मुकाबला करते आये हैं तो यह क्या होता है? कई बार तो मरके भी आये, फिर इस बार गुरु की आज्ञा का पालन करते-करते मर भी जायेंगे तो अमर हो जायेंगे, घाटा क्या पड़ता है?

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