अमीर खुसरो की गुरु में अनन्य निष्ठा
हजरत निजामुद्दीन औलिया के हजारों शिष्य थे। उनमें से 22 ऐसे समर्पित शिष्य थे जो उन्हें खुदा मानते थे, अल्लाह का स्वरूप मानते थे। एक बार हजरत निजामुद्दीन औलिया ने उनकी परीक्षा लेनी चाहिए। वे शिष्यों के साथ दिन भर दिल्ली के बाजार में घूमे। रात्रि हुई तो औलिया एक वेश्या की कोठी पर गये। वेश्या उन्हें बड़े आदर से कोठी की ऊपरी मंजिल पर ले गयी। सभी शिष्य नीचे इंतजार करने लगे कि 'गुरुजी अब नीचे पधारेगे... अब पधारेंगे।' वेश्या तो बड़ी प्रसन्न हो गयी कि मेरे ऐसे कौने-से सौभाग्य हैं जो ये दरवेश मेरे द्वार पर पधारे? उसने औलिया से कहाः "मैं तो कृतार्थ हो गयी जो आप मेरे द्वार पर पधारे। मैं आपकी क्या खिदमत करूँ?"
औलिया ने कहाः "अपनी नौकरानी के द्वारा भोजन का थाल और शराब की बोतल में पानी इस ढंग से मँगवाना कि मेरे चेलों को लगे कि मैंने भोजन व शराब मँगवायी है।" वेश्या को तो हुक्म का पालन करना था। उसने अपने नौकरानी से कह दिया।
थोड़ी देर बाद नौकरानी तदनुरूप आचरण करती हुई भोजन का थाल और शराब की बोतल ले कर ऊपर जाने लगी। तब कुछ शिष्यों को लगा कि 'अरे ! हमने तो कुछ और सोचा था, किंतु निकला कुछ और.... औलिया ने तो शराब मँगवायी है.... 'ऐसा सोचकर कुछ शिष्य भाग गये। ज्यों-ज्यों रात्रि बढ़ती गयी, त्यों-त्यों एक-एक करके शिष्य खिसकने लगे। ऐसा करते-करते सुबह हो गयी। निजामूद्दीन औलिया नीचे उतरे। देखा तो केवल अमीर खुसरो ही खड़े थे। अनजान होकर उन्होंने पूछाः "सब कहाँ चले गये?"
अमीर खुसरोः "सब भाग गये।"
औलियाः "तू क्यों नहीं भागा? तूने देखा नहीं क्या कि मैंने शराब की बोतल मँगवायी और सारी रात वेश्या के पास रहा?"
अमीर खुसरोः "मालिक ! भागता तो मैं भी किंतु आपके कदमों के सिवाय और कहाँ भागता?"
निजामुद्दीन औलिया की कृपा बरस पड़ी और बोलेः "बस, हो गया तेरा काम पूरा।"
कैसी अनन्य निष्ठा थी अमीर खुसरो की !
आज भी निजामुद्दीन औलिया की मजार के पास ही उनके सतशिष्य अमीर खुसरो की मजार उनकी गुरुनिष्ठा, गुरुभक्ति की खबर दे रही है।
सतगुरु दाता सर्ब के, तू किर्पिन कंगाल।
गुरु-महिमा जाने नहीं, फँसयौ मोह के जाल।।
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