रविवार, अप्रैल 24, 2011

बिना विवेक और वैराग्य के तुम्हें ब्रह्माजी का उपदेश भी काम न आयेगा !


  
    जो मौत की यात्रा के साक्षी बन जाते हैं उनके लिये यात्रा यात्रा रह जाती हैसाक्षी उससे परे हो जाता है ।

   मौत के बाद अपने सब पराये हो गये । तुम्हारा शरीर भी पराया हो गया । लेकिन तुम्हारी आत्मा आज तक परायी नहीं हुई ।

    हजारों मित्रों ने तुमको छोड़ दियालाखों कुटुम्बियों ने तुमको छोड़ दियाकरोड़ों-करोड़ों शरीरों ने तुमको छोड़ दियाअरबों-अरबों कर्मों ने तुमको छोड़ दिया लेकिन तुम्हारा आत्मदेव तुमको कभी नहीं छोड़ता ।

    शरीर की स्मशानयात्रा हो गयी लेकिन तुम उससे अलग साक्षी चैतन्य हो । तुमने अब जान लिया कि:मैं इस शरीर की अंतिम यात्रा के बाद भी बचता हूँअर्थी के बाद भी बचता हूँजन्म से पहले भी बचता हूँ और मौत के बाद भी बचता हूँ । मैं चिदाकाश … ज्ञानस्वरुप आत्मा हूँ । मैंने छोड़ दिया मोह ममता को । तोड़ दिया सब प्रपंच ।

    इस अभ्यास को बढ़ाते रहना । शरीर की अहंता और ममताजो आखिरी विघ्न हैउसे इस प्रकार तोड़ते रहना । मौका मिले तो स्मशान में जाना । दिखाना अपने को वह दृश्य ।

    मैं भी जब घर में थातब स्मशान में जाया करता था । कभी-कभी दिखाता था अपने मन को किदेख ! तेरी हालत भी ऐसी होगी ।

    स्मशान में विवेक और वैराग्य होता है । बिना विवेक और वैराग्य के तुम्हें ब्रह्माजी का उपदेश भी काम न आयेगा । बिना विवेक और वैराग्य के तुम्हें साक्षात्कारी पूर्ण सदगुरु मिल जायँ फिर भी तुम्हें इतनी गति न करवा पायेंगे । तुम्हारा विवेक और वैराग्य न जगा हो तो गुरु भी क्या करें ?

    विवेक और वैराग्य जगाने के लिए कभी कभी स्मशान में जाते रहना । कभी घर में बैठे ही मन को स्मशान की यात्रा करवा लेना ।

मरो मरो सब कोई कहे मरना न जाने कोय ।
एक बार ऐसा मरो कि फिर मरना न होय ॥

    ज्ञान की ज्योति जगने दो । इस शरीर की ममता को टूटने दो । शरीर की ममता टूटेगी तो अन्य नाते रिश्ते सब भीतर से ढीले हो जायेंगे । अहंता ममता टूटने पर तुम्हारा व्यवहार प्रभु का व्यवहार हो जाएगा । तुम्हारा बोलना प्रभु का बोलना हो जाएगा । तुम्हारा देखना प्रभु का देखना हो जाएगा । तुम्हारा जीना प्रभु का जीना हो जाएगा ।


    केवल भीतर की अहंता तोड़ देना । बाहर की ममता में तो रखा भी क्या है ?
देहाभिमाने गलिते विज्ञाते परमात्मनि।
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधय: ॥
देह छ्तां जेनी दशा वर्ते देहातीत ।
ते ज्ञानीना चरणमां हो वन्दन अगणित ॥

भीतर ही भीतर अपने आपसे पूछो कि:
        ‘मेरे ऐसे दिन कब आयेंगे कि देह होते हुए भी मैं अपने को देह से पृथक् अनुभव करुँगा ? मेरे ऐसे दिन कब आयेंगे कि एकांत में बैठा बैठा मैं अपने मन बुद्धि को पृथक् देखते-देखते अपनी आत्मा में तृप्त होऊँगा मेरे ऐसे दिन कब आयेंगे कि मैं आत्मानन्द में मस्त रहकर संसार के व्यवहार में निश्चिन्त रहूँगा मेरे ऐसे दिन कब आयेंगे कि शत्रु और मित्र के व्यवहार को मैं खेल समझूँगा ?

    ऐसा न सोचो कि वे दिन कब आयेंगे कि मेरा प्रमोशन हो जाएगा… मैं प्रेसिडेन्ट हो जाऊँगा … मैं प्राइम मिनिस्टर हो जाऊँगा ?
    आग लगे ऐसे पदों की वासना को ! ऐसा सोचो कि मैं कब आत्मपद पाऊँगा कब प्रभु के साथ एक होऊँगा ? 
    अमेरिका के प्रेसिडेन्ट मि कूलिज व्हाइट हाउस में रहते थे । एक बार वे बगीचे में घूम रहे थे । किसी आगन्तुक ने पूछा : यहाँ कौन रहता है ?

    कूलिज ने कहा : यहाँ कोई रहता नहीं है। यह सराय हैधर्मशाला है। यहाँ कई आ आकर चले गयेकोई रहता नहीं ।

    रहने को तुम थोड़े ही आये हो ! तुम यहाँ से गुजरने को आये होपसार होने को आये हो । यह जगत तुम्हारा घर नहीं है । घर तो तुम्हारा आत्मदेव है । फकीरों का जो घर है वही तुम्हारा घर है। जहाँ फकीरों ने डेरा डाला है वहीं तुम्हारा डेरा सदा के लिए टिक सकता हैअन्यत्र नहीं । अन्य कोई भी महलचाहे कैसा भी मजबूत होतुम्हें सदा के लिए रख नहीं सकता ।

संसार तेरा घर नहींदो चार दिन रहना यहाँ ।
कर याद अपने राज्य कीस्वराज्य निष्कंटक जहाँ ॥

    कूलिज से पूछा गया : ‘ I have come to know that Mr. Coolidge, President of America lives here.’ (‘मुझे पता चला है कि अमेरिका के राष्ट्रपति श्री कूलिज यहाँ रहते हैं ।’) कूलिज ने कहा : ‘No, Coolidge doesnot live here. Nobody lives here. Everybody is passing through.’ (‘नहींकूलिज यहाँ नहीं रहता । कोई भी नहीं रहता । सब यहाँ से गुजर रहे हैं। ’)

    चार साल पूरे हुए । मित्रों ने कहा : फिर से चुनाव लड़ो । समाज में बड़ा प्रभाव है आपका । फिर से चुने जाओगे ।

    कूलिज बोला : चार साल मैंने व्हाइट हाउस में रहकर देख लिया । प्रेसिडेन्ट का पद सँभालकर देख लिया । कोई सार नहीं । अपने आपसे धोखा करना हैसमय बरबाद करना है। I have no time to waste. अब मेरे पास बरबाद करने के लिए समय नहीं है ।

    ये सारे पद और प्रतिष्ठा समय बरबाद कर रहे हैं तुम्हारा । बड़े बड़े नाते रिश्ते तुम्हारा समय बरबाद कर रहे हैं । स्वामी रामतीर्थ प्रार्थना किया करते थे :

       ‘हे प्रभु ! मुझे मित्रों से बचाओमुझे सुखों से बचाओ

    सरदार पूरनसिंह ने पूछा : क्या कह रहे हैं स्वामीजी शत्रुओं से बचना होगामित्रों से क्या बचना है ?

    रामतीर्थ : नहींशत्रुओं से मैं निपट लूँगादु:खों से मैं निपट लूँगा । दु:ख में कभी आसक्ति नहीं होतीममता नहीं होती । ममताआसक्ति जब हुई है तब सुख में हुई हैमित्रों में हुई हैस्नेहियों में हुई है ।

    मित्र हमारा समय खा जाते हैंसुख हमारा समय खा जाता है । वे हमें बेहोशी में रखते हैं । जो करना है वह रह जाता है । जो नहीं करना है उसे सँभालने में ही जीवन खप जाता है ।

    तथाकथित मित्रों से हमारा समय बच जाएतथाकथित सुखों से हमारी आसक्ति हट जाए । सुख में होते हुए भी परमात्मा में रह सकोमित्रों के बीच रहते हुए भी ईश्वर में रह सको - ऐसी समझ की एक आँख रखना अपने पास ।

ॐ शांति : शांति : शांति : ! ॐ … ॐ … ॐ … !!


लेबल: