रामायण का तात्विक अर्थ
पाप का फल ही दुख नहीं है ।
पुण्यमिश्रित फल भी विघ्न है । ऐसा कौन सा इंसान है जिसको संसार में विघ्न
नहीं है। तो भगवान महा पापी होंगे इसलिए उनको दुख आया होगा, 14 साल वन
में गए। यदि पाप का फल ही दुख होता तो राज्यगद्दी की तैयारिया हो रही है और
तुरिया बज रही है नगाड़े गुनगुना रहे है और राज्याभिषेक की जगह पर अब कैकेयी का
मंथरा की चाबी चली और रामजी को बोलते है वनवास । एक तरफ तो
राज्याभिषेक की तैयारी और दूसरी तरफ वनवास का सुनकर जिनके चेहरे पर जरा करचली नहीं
पड़ती, जिनके चित्त में जरा क्षोभ नहीं होता, राज्याभिषेक को सुनकर जिनके
चित्त में हर्ष नहीं होता और वनवास सुनकर जिनके चित्त में शोक नहीं होता, ऐसे जो
अपने आप मे ठहरे है वे ही तो रामस्वरूप है । ऐसे राम को हजार हजार
प्रणाम । ॐ... ॐ.... ॐ... ॐ... ॐ... । दस
इन्द्रियों के बीच रमण करने वाला दशरथ (जीव) कहता है कि अब इस हृदय गादी पर
जीव का राज्य नहीं, राम का राज्य होना चाहिए और गुरु बोलते है कि हाँ ! करो । गुरु जब राम
राज्य का हुंकारा भरता है तो दशरथ को खुशी होती है लेकिन राम राज्य होने के पहले
दशरथ, कैकेयी की मुलाक़ात मे आ जाता है । दशरथ की तीन रानिया बताई, कौशल्या, सुमित्रा
और कैकेयी । सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण । जब सत्वगुण में से, रजो गुण मे से हटकर दशरथ
(जीव), तमोगुण में, जाता है, रजोगुण में, तमोगुण में, फँसता है, तमस मिश्रित रजस में फँसता है, कैकेयी अर्थात कीर्ति में, वासना में
फँसता है तो रामराज्य होने के बदले में राम वनवास हो जाता है। राम का
राज्य नहीं, राम वनवास ! ओर सब है राम ही जा रहे है । फिर रामायण के आध्यात्मिक
कथा का अर्थ लगाने वाले महापुरुष लोग, आध्यात्मिक रामायण का अर्थ
बताने वाले संत लोग कहते है,
दशरथ छटपटाता है । राम वनवास होता है तो दशरथ भी
चैन से नहीं जी सकता है और समाज में देखो ! कोई दशरथ चैन से नहीं है, सब बेचैन
है । ज्यादा धन वाला-कम धन वाला,
ज्यादा पढ़ा- कम पढ़ा, अधिक
मित्रों वाला- कम मित्रोंवाला,
मोटा अथवा पतला, नेता अथवा जनता, देखो !
सब बेचैन है । क्यों ? कि राम वनवास है । कथा
का दूसरा पॉइंट यह बता रहा है कि रामजी के साथ सीताजी थी । लक्ष्मण जी थे । राम
माने ब्रह्म, सीता माने वृत्ति । राधा माने धारा, श्याम माने ब्रह्म ।
राधेश्याम.... सीताराम..... । सीता माने वृत्ति, राम के
करीब है लेकिन सीता की नजर स्वर्ण के मृग पर जाती है और राम को बोलती है ला दो ।
जब सोने के मृग पर तुम्हारी सीता जाती है तो उसे राम का वियोग हो जाता है । सोने
के मृग पर, धन दौलत पर जब हमारा चित्त जाता है तो अंदर आत्माराम से हम विमुख हो
जाते है, फिर लंका मिलती है,
स्वर्ण मिलता है, लेकिन शांति नहीं मिलती ।
उसी वृत्ति को यदि राम की मुलाक़ात करानी हो तो बीच मे हनुमानजी चाहिए । सौ
वर्ष आयुष वाला जीवन, उस जीवन को परमात्मा के लिए छलांग मार दे, उस जीवन
के भोग विलास से छ्लांग मार दे । जामवंत को बुलाया, उसको
बुलाया, उसको बुलाया । कोई बोलता है एक योजन कूदूंगा, कोई बोलता
है दो योजन । हनुमानजी सौ योजन समुद्र कूद गए । माप करेंगे तो भारत के किनारे से
लंका सौ योजन नहीं है लेकिन शास्त्र की कुछ गूढ़ बाते है । जीवन जो सौ वर्ष वाला
है उस जीवन के रहस्य को पाने के लिए, छलांग मारने का अभ्यास और
वैराग्य हो । हनुमानजी को अभ्यास और वैराग्य का प्रतीक कहा , जो
सीताजी को रामजी से मिला देगा । रामजी उत्तर भारत मे हुए और रावण दक्षिण
की तरफ । उत्तर ऊँचाई है और दक्षिण नीचाई है । ऐसे ही हमारी वृत्तियाँ शरीर
के नीचे हिस्से मे रहती है । और जब हम काम से घिर जाते है तो हमारी
आँख की पुतली नीचे आ जाती है । जब हम क्रोध से भर जाते है तो हमारी सीता नीचे आ
जाती है और सीता जब रावण के करीब होती है तो बेचैन होती है, ज्यादा
समय रावण के वहाँ ठहर नहीं सकती । काम के करीब हमारी सीता ज्यादा समय ठहर
नहीं सकती । चित्त मे काम आ जाता है, बेचैनी आ जाती है और लेकिन
चित्त में राम आ जाता है तो आनंद आनंद आ जाता है । रावण की अशोक वाटिका मे
सीताजी नजर कैद है लेकिन सीता में यदि निष्ठा है तो रावण अपना मनमाना कुछ कर नहीं
सकता है। ऐसे ही हमारी वृत्ति मे यदि दृढ़ता है राम के प्रति पूर्ण आदर है तो काम
हमे नचा नहीं सकता । उस दृढ़ता के लिए साधन और भजन है। चित्तवृति को दृढ़
बनाने के लिए, सीता के संकल्प को मजबूत बनाने के लिए तप चाहिए ,जप चाहिए, स्वाध्याय
चाहिए, सुमिरन चाहिए । जब कामनाएँ सताने लगे, नरसिंह
भगवान ने जैसे कामना के पुतले को फाड़ दिया ऐसे ही काम को चीर दे, नरसिंह अवतार
का चिंतन करने से फायदा होता है । इस कथा की आध्यात्मिक शैली को जानने वाले संतों
का ये भी मानना है कि रावण मर नहीं रहा था और विभीषण से पूछा कि कैसे मरेगा ? बोले
डुंटी (नाभि ) में आपका बाण जब तक नहीं लगेगा तब तक वो रावण नहीं मरेगा
अर्थात कामनाए नाभि केंद्र मे रहती है । योगी जब कुण्डलिनि योग करते है तो मूलाधार
चक्र मे जंपिंग होता है और फिर स्वाधीस्थान चक्र मे खिंचाव होता है, पेट अंदर
आता है बाहर जाता है, साधक लोग, तुम लोगो को भी अनुभव है । वो जन्म जन्मांतरों को कामनाए है, वासनाए है, उनको
धकेलने के लिए हमारी चित्तवृत्ति हमारी जो सीता माता है, उस काम को
धकेलने के लिए डांटती फटकरती है और जब डांट फटकार चालू होती है तो साधक के
शरीर मे क्रियाए होने लगती है। देखो समन्वय हो रहा है कथा का और कुण्डलिनि
योग का । कभी कभी तो रावण का प्रभाव दिखता है और कभी कभी सीताजी का प्रभाव दिखता
है । दोनों की लड़ाई चल रही है है । कभी कभी तो साधक के जीवन मे कामनाओं का प्रभाव
दिखता है और कभी कभी तो सद्विचारों का प्रभाव दिखता है। अयोध्या को कहा कि नौ
द्वार थे । ऐसे ही तुम्हारा शरीर रूपी अयोध्या है, इसमे भी
नौ द्वार है और नौ द्वार में जीने वाला ये जीव जो दशरथ है, राम को
वनवास कर दिया कैकेयी के कारण,
छटपटा के प्राण त्याग कर देता है । राम राम कही राम
हाय राम .... तव विरह में तन तजी राज=हू गयो सुरधाम । जब सीताजी को राम के
करीब लाना है तो बंदर भी साथ देते है । रीछ भी साथ देते है । और तो क्या भी
खिचकुलिया भी साथ देने लगी कण कण उठा कर रेती का और समुद्र मे डालने लगी तुम यदि
रामजी और सीता की मुलाक़ात के रास्ते चलते हो, तुम्हारी वृत्ति को परमात्मा
की ओर लगाते हो तो पृकृति और वातावरण तुम्हें अनुकूलता भी देता है, सहयोग भी
देता है और तुम यदि भोग कि तरफ होते हो तो वातावरण तुम्हें नोच भी लेता है ।
अयोध्या सुनी सुनी थी तब तक,
जब तक राम नहीं आए जब राम आ रहे है, ऐसे खबर
सुनी अयोध्या वासियो ने तो नगर को सजाया और नगरवासियों ने साफ सफाई की । राम आने
को है, राम आने को होते है तो साफ सफाई पहले हो जाती है ऐसे ही तुम्हारा
चित्त रूपी नगर अथवा देह रूपी नगर, जब परमात्म साक्षात्कार होता
हो तो कल्मष तुम्हारे पहले कट जाते है। तुम्हारे पाप तुम्हारा मल, विक्षेप
हट जाता है। तुम स्वच्छ पवित्र हो जाते हो और राम जब नगर मे प्रवेश करते है
वो दिन दीवाली का दिन माना जाता है। लौकिक दीवाली व्यापारी पूजते है लेकिन साधक की
दिवाली तब है जब हृदया मे छुपे हुए राम जो है न, काम के करीब गए है सीता को
छुड़ाने के लिए, वो राम जब अपने सिंहासन पर आ जाए और अपने स्वरूप मे जाग्रत हो जाए उस
दिन साधक की दिवाली। बड़ा दिन तो वह है कि बड़े मे बड़ा जब परमात्वतत्व का ज्ञान
हो उससे बड़ा दिन कोई नहीं । लब पर किसी का नाम लूँ तो
तेरा नाम आए । ॐ .... ॐ
इस सत्संग को सुनने के लिए कृपया यहाँ जाएँ :
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