ब्राह्मी स्थिति क्या है ?
आपकी श्रद्धा जिस इष्टदेव में हो, भगवान में हो, देवी-देवता में हो या सदगुरुदेव में हो, जिसे आप खूब स्नेह करते हो, आदर करते हो, पूजन करते हो उनकी मूर्ति, चित्र या फोटो अपने साधना-कक्ष में उचित जगह पर रखो। उनके सामने आसनस्थ होकर बैठ जाओ। उनके चरणों से लेकर मस्तक तक.... मस्तक से लेकर चरणों तक के अंगों को खूब प्रेमपूर्ण दृष्टि से निहारते रहो। फिर किसी भी एक अंग पर दृष्टि जमाकर त्राटक का अभ्यास करो। पलकें गिराये बिना निहारते रहो। निहारते-निहारते ठीक एकाग्रता हो जाय तो आँखें बन्द करके दृष्टि को भ्रूमध्य में, आज्ञाचक्र में एकाग्र करो। बाहर जिस मूर्ति या फोटो पर त्राटक किया था वह भीतर दिखने लगेगा। वृत्ति को एकाग्र करने में यह प्रयोग बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।
व्यवहार के क्षेत्र में या परमार्थ के क्षेत्र में जिनको जल्दी आगे बढ़ना है, सफल होना है उनके लिए एक बढ़िया तरीका यह भी हैः काँसे की थाली में शिवलिंग स्थापित करो। भगवान का पूजन करो। धूप-दीप करो। जल चढ़ाओ। फिर वह सब ऐसे ही रखकर शिवलिंग को स्नेहपूर्ण दृष्टि से निहारते जाओ। आँखों की पलकें गिराये बिना त्राटक करते जाओ। इससे आँखों की रोशनी भी बढ़ेगी और त्राटक सिद्ध होने पर मनोजय होने लगेगा।
इस प्रकार त्राटक के द्वारा मन को एकाग्र करने के कई तरीके हैं। प्रारम्भ में तो लगेगा कि हम त्राटक करते हैं, ध्यान में बैठते हैं लेकिन मन इधर-उधर चला जाता है। कुछ लाभ दिखाई नहीं देता, कोई अनुभव नहीं होता। फिर भी आप निराश न होओ। उत्साहपूर्वक अभ्यास जारी रखो। मन में अनंत अनंत संकल्प-विकल्प उठते रहते हैं। त्राटक के अभ्यास से इनका प्रमाण कम होता जायेगा। अभी जो संकल्प-विकल्प होते हैं उनका प्रमाण 90....80....70... ऐसे कम होता जायेगा। कम होते होते 2% ही रह जायेगा और एक समय ऐसा भी आयेगा कि जब आप निःसंकल्प अवस्था को प्राप्त कर लोगे। यह निःसंकल्पावस्था ही ईश्वरीय अवस्था है, ब्राह्मी स्थिति है।
ऐसा नहीं है कि आप त्राटक करो, ध्यान-भजन करो और आकाश से कोई देवी-देवता आयेंगे, आपको कोई वरदान देंगे, कुछ देंगे तब आप सुखी होंगे। मानो आपके अभ्यास के बल से वे आ भी जायें, आशीर्वाद या कोई चीज-वस्तु दे भी दें फिर भी वह सदा के लिए रहेगी नहीं। वह वस्तु आपको छोड़कर कभी-न-कभी चली जायेगी अथवा आप उसको छोड़कर चले जाओगे। अतः अभ्यास द्वारा उपार्जित शक्ति का उपयोग देवी-देवता से कुछ माँगने में नहीं करना है अथवा किसी को ठीक करने के लिए पानी अभिमंत्रित करके देने में नहीं करना है। त्राटक का उपयोग मनोजय के लिए ही करना है।
अपने चित्त में संकल्प-विकल्पों की बड़ी भारी भीड़ लगी है। उसको त्राटक के द्वारा हटाओ। एक ऐसी दशा लाओ कि एक संकल्प उठा, विलीन हुआ... फिर दूसरा अभी उठा नहीं...बीच में जो निःसंकल्पावस्था है उसको बढ़ाओ। दो संकल्पों के मध्य की जो अवस्था है वह शुद्धावस्था ही आपका आत्मस्वरूप है। इस अवस्था में बड़ी ताकत है जिसका वर्णन नहीं हो सकता। इसी ब्राह्मी अवस्था में परम सुख है, प्रगाढ़ शांति है, अदभुत सामर्थ्य है। एकाग्रता के अभ्यास द्वारा यह अवस्था सिद्ध कर लेना एकाग्रता का सदुपयोग है।
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