बुधवार, मई 26, 2010

सावधान ! प्रभु के प्‍यारे सावधान !

यह समस्त दुनिया तो एक मुसाफिरखाना (सराय)  है। दुनियारूपी सराय में रहते हुए भी उससे निर्लेप रहा करो। जैसे कमल का फूल पानी में रहता है परंतु पानी की एक बूँद भी उस पर नहीं ठहरती, उसी प्रकार संसार में रहो।


तुलसीदासजी कहते हैं-

तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग।

हिलिये मिलिये प्रेम सों नदी नाव संयोग।।

जैसे नौका में कई लोग चढ़ते, बैठते और उतरते हैं परंतु कोई भी उसमें ममता या आसक्ति नहीं रखता, उसे अपना रहने का स्थान नहीं समझता, ऐसे ही हम भी संसार में सबसे हिल-मिलकर रहे परंतु संसार में आसक्त न बनें। जैसे, मुसाफिरखाने में कई चीजें रखी रहती हैं किंतु मुसाफिर उनसे केवल अपना काम निकाल सकता है, उन्हें अपना मानकर ले नहीं जा सकता। वैसे ही संसार के पदार्थों का शास्त्रानुसार उपयोग तो करो किंतु उनमें मोह-ममता न रखो। वे पदार्थ काम निकालने के लिए हैं, उनमें आसक्ति रखकर अपना जीवन बरबाद करने के लिए नहीं हैं।


सपने के संसार पर, क्यों मोहित किया मन मस्ताना है ?

घर मकान महल न अपने, तन मन धन बेगाना है,

चार दिनों का चैत चमन में, बुलबुल के लिए बहाना है,

आयी खिजाँ हुई पतझड़, था जहाँ जंगल, वहाँ वीराना है,

जाग मुसाफिर कर तैयारी, होना आखिर रवाना है,


दुनिया जिसे कहते हैं, वह तो स्वयं मुसाफिरखाना है।

अपना असली वतन आत्मा है। उसे अच्छी तरह से जाने बिन शांति नहीं मिलेगी और न ही यह पता लगेगा कि 'मैं कौन हूँ'। जिन्होंने स्वयं को पहचाना है, उन्होंने ईश्वर को जाना है।

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