रविवार, मई 23, 2010

ऐसा कोई सुखभोग नहीं;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;


भोगे रोग भयं। भोगों में रोगों का डर रहता ही है। भोग भोगने का परिणाम रोग ही होता है। भोग बुरी बला है। भोग भोगने के पश्चात् चित्त कदापि तृप्त नहीं होता, सदैव व्याकुल रहता है। भोगों का सुख अनित्य होता है। दिल चाहता है कि बार-बार भोग भोगूँ। अतः मन में शांति नहीं रहती। जैसे घी को अग्नि में डालते समय पहले तो अग्नि बुझने लगती है, परंतु बाद में भड़क उठती है, वैसे ही भोग भी हैं। भोगते समय थोड़ी प्रसन्नता एवं तृप्ति होती है, परंतु बाद में भोग-वासना भड़ककर मनुष्य को जलाती, मनुष्य को सदैव अपना गुलाम बनाकर रखना चाहती है। 'गुरूग्रन्थ साहिब' के राग आसा, वाणी श्री रविदास शब्द में आता हैः
म्रिग मीन भ्रिंग पतंग कुंचर, एक दोख बिनास।
पंच दोख असाध जा महि, ता कि केतक आस।।
श्री रविदासजी फरमाते हैं  कि 'हिरन केवल शब्दों पर रीझकर शिकारी के वश में हो जाता है, मछली खाने के लोभ में धीवर के जाल में फँसती है, भ्रमर फूल की सुगंध पर आसक्त होकर अपनी जान गँवा देता है, पतंग दीपक की ज्योति पर मस्त होकर अपने को जलाकर समाप्त कर देता है, हाथी काम के वश  होकर गड्ढे में गिरता है। अर्थात् मनुष्येतर प्राणी एक-एक विषय के वश में होकर स्वयं को नष्ट कर देता है, जबकि मनुष्य तो पाँचों विषयों में फँसा हुआ है। अतः उसके बचने की कौन सी आशा होगी ? अवश्य ही वह नष्ट होगा।
भोग को सदैव रोग समझो। विषय-विकारों में डूबकर सुख-शांति की अभिलाषा कर रहे हो। शोक तुम्हारे ऐसे जीने पर !
स्मरण रखो कि तुम्हें धर्मराज के समक्ष आँखें नीची करनी पड़ेंगी। कबीर साहब ने फरमाया हैः
धर्मराय जब लेखा माँगे, क्या मुख ले के जायेगा ?
कहत कबीर सुनो रे साधो, साध संगत तर जायेगा।।
भूलो नहीं कि वहाँ कर्म का प्रत्येक अंश प्रकट होगा, प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी रहेगा। तुम्हें वहाँ अपना सिर नीचा करना पड़ेगा। अतः सोचो, अभी भी समय गया नहीं है। सामी साहब कहते हैं कि 'जो समय बीत गया सो बीत गया, शेष समय तो अच्छा आचरण करो। अपने अंतःकरण में अपने प्रियतम को देखो।' मनुष्य-देह वापस नहीं मिलेगी।
अतः आज अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लो कि मैं सत्पुरूषों के संग से, सत्शास्त्रों के अध्ययन से, विवेक एवं वैराग्य का आश्रय लेकर किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरूष की शरण में जाकर तथा अपने कर्त्तव्यों का पालन करके इस मनुष्य-योनि में ही मोक्ष प्राप्त करूँगा, इस अमूल्य मनुष्य जन्म को विषय भोगों में बरबाद नहीं करूँगा, इस मानव जीवन को सार्थक बनाऊँगा तथा आत्मज्ञान (मोक्ष) प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से निकल जाऊँगा, जीवन को सफल बनाऊँगा।

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