शुक्रवार, मई 21, 2010

सुखी होने का नुस्‍खा

जिस प्रकार पानी में दिखने वाला सूर्य का प्रतिबिम्ब वास्तविक सूर्य नहीं है अपितु सूर्य का आभासमात्र है, उसी प्रकार विषय-भोगों में जो आनंद दिखता है वह आभास मात्र ही है, सच्चा आनंद नहीं है। वह ईश्वरीय आनंद का ही आभासमात्र है। एक परब्रह्म परमेश्वर ही सत्, चित् तथा आनंदस्वरूप है। वही एक तत्त्व किसी में सत् रूप में भास रहा है, किसी में चेतनरूप में तो किसी में आनंदरूप में। किंतु जिसका हृदय शुद्ध है उसे ईश्वर एक ही अभेदरूप में प्रतीत होता है। वह सत् भी स्वयं है, चेतन भी स्वयं है और आनंद भी स्वयं है।
स्वामी रामतीर्थ से एक व्यक्ति ने प्रार्थना कीः "स्वामी जी ! मुझ पर ऐसी कृपा कीजिए कि मैं दुनिया का राजा बन जाऊँ।"
स्वामी रामतीर्थः "दुनिया का राजा बनकर क्या करोगे ?"
"व्यक्तिः "मुझे आनंद मिलेगा, प्रसन्नता होगी।"
स्वामी रामतीर्थ बोलेः "समझो, तुम राजा हो गये परंतु राजा होने के बाद भी कई दुःख आयेंगे क्योंकि तुम ऐसे पदार्थों से सुखी होना चाहते हो जो नश्वर हैं। वे सदा किसी के पास नहीं रहते तो तुम्हारे पास कहाँ से रहेंगे ? इससे बढ़िया, यदि तुम नश्वर पदार्थों से सुखी होने की इच्छा ही छोड़ दो तो इसी क्षण परम सुखी हो जाओगे। तुम्हें अपने भीतर आनंद के अतिरिक्त दूसरी कोई वस्तु मिलेगी ही नहीं। जिस आनंद की प्राप्ति के लिए तुम राज्य माँग रहे हो, उससे अधिक आनंद तो वस्तुओं अथवा परिस्थितियों की इच्छा निवृत्ति में है।"
हम भोगों को नहीं भोगते बल्कि भोग ही हमें भोग डालते हैं। क्षणिक सुख के लिए हम बल, बुद्धि, आयु और स्वास्थ्य को नष्ट कर देते हैं। वह क्षणिक सुख भी भोग का फल नहीं होता बल्कि हमारे मन की स्थिरता तथा भोग को पाने की इच्छा के शांत होने का परिणाम होता है। वह आनंद हमारे आत्मा का होता है, भोग भोगने का नहीं।
इच्छा की निवृत्ति से मन शांत होता है और आनंद मिलता है। अतः इच्छाओं और वासनाओं का त्याग करो तो मन शांत होगा तथा अक्षय आनंद की प्राप्ति होगी। इच्छाओं को त्यागने में ही सच्ची शांति है।
संतोषी व्यक्ति ही सुखी रह सकता है। भले ही कोई व्यक्ति करोड़पति क्यों न हो किंतु यदि उसे संतोष नहीं हो तो वह कंगाल है। संतोषी व्यक्ति ही सबसे अधिक धनवान है। उसी को शांति प्राप्त होती है, जिसे प्राप्त वस्तु अथवा परिस्थिति में संतोष होता है।
इच्छा-वासनाओं का त्याग और प्राप्त वस्तुओं में संतुष्टि का अवलंबन मनुष्य को महान बना देता है। अतः वासनाओं का त्याग करके प्राप्त वस्तुओं में संतुष्ट रहो तथा अपने मन को परमात्मा में लगाओ तो आप सुख और आनंद को बाँटने वाले बन सकते हो।

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