शनिवार, अप्रैल 14, 2012

दिव्‍य ज्ञान - फल है जगत दान


निर्भय कौन है ?
जिस के जप से सारे भय मिट जाते ऐसा कौन है?
वो तुम ही हो!
तुम अपने को जानते नही ..
तुम्हारे आगे कोई भय फरक नही सकता…भय मन में आता है , उस को तुम जानते हो..
चिंता चित्त में आती उस को तुम जानते हो.. बीमारी शरीर में आती है  उस को भी तुम जानते हो..दुख मन में आता उस को तुम जानते हो… तुम ग्यान स्वरूप परमात्मा के अमर आत्म-चैत्यन्य हो !
जैसे घड़े का आकाश महा आकाश का  अमर अंग  है;  ऐसे जीवात्मा परमात्मा का अमर अंग है..
शरीर मरने के बाद भी तुम नही मरते तो तुम को  भय किस बात का ?…शरीर मर जाए, जल जाए..बैल घोड़े गधे के योनि में जाए ..फिर भी तुम्हारे निर्भय स्वभाव में कोई फ़र्क नही पड़ता !
एक सच्चे गुरु के सच्चे सेवक थे..सत्संग सुनते और गुरु ने जैसा कहा वैसा उन्हो ने अपने जीवन में उतारा था..
‘निर्भव जपे  सकल भय मिटे , संत कृपा ते प्राणी छूटे’ इस कड़ी को सार्थक कर दिया… मतलब वो महान आत्मा बन गया…
जो तुच्छ चीज़ों में उलझता है वो तुच्छ आत्मा है..जो मध्यम चीज़ो में आसक्ति करता वो मध्यम आत्मा है..
जो महान परमात्मा का सत्संग सुनता है और उस का चिंतन करता है वो  महान आत्मा बन जाता..
जैसे केशवराम भगवान ने लीलाराम प्रभु को महान आत्मा बना दिया..लीलाशाह प्रभु बन गये!
और लीलाशाह प्रभु ने आसुमल को क्या बना दिया तुम ढूँढ लेना… :)
जोगी रे क्या जादू है तेरे ग्यान  में!
क्या जादू है तेरे जोग में!!

ऐसे ही भगवान शंकर ने पार्वती को निर्भव जपे  सकल भय मिटे  की महान संपदा पाने की  वामदेव गुरु के चरणों में दीक्षा दिलाई..

कलकत्ते की माँ काली ने प्रगट हो कर पुजारी गदाधर को तोतापुरी गुरु के पास जाने की आज्ञा दी..पुजारी बोले , ‘ माँ तुम प्रगट हो कर मुझे दर्शन देती हो ..मेरे हाथ का बना गजरा तुम सूँघती हो..कभी बालों में लगाती हो..मैं तुम्हारा बालक हो के दूसरे का शिष्य क्यूँ  बनूंगा?’

माँ काली ने गदाधर पुजारी को समझाया:
  5 शरीर होते ..एक ये दिखता है उस को अन्न मय शरीर बोलते..इस के अंदर प्राण मय शरीर है, प्राण मय शरीर निकल जाए तो आदमी मुर्दा हो जाएगा..उस के अंदर है मनोमय शरीर… अन्न मय शरीर और प्राण मय शरीर दोनो के होते हुए भी  मन सो गया तो मुँह में पेठा रखो तो स्वाद नही आएगा..आगरा में बोल रहा हूँ इसलिए पेठा का नाम लिया..दूसरी जगह होता तो रसगुल्ला बोलता :) …पेठा ज़्यादा नही खाए, पेठा से भूख मरती है ..तो मन सो गया तो मुँह में पेठा मीठा नही लगेगा…पास में  साप सो जाए तो पता नही लगेगा..तो ये मनोमय शरीर… चौथा होता  है मति शरीर 5 ज्ञानेन्द्रिया और बुध्दी के मेल से ये बनता है..इस को विज्ञान मय शरीर भी बोलते.. 5 वां होता है आनंद मय शरीर…देखा आँख ने आनंद हृदय में आता है, आँख में आनंद नही आता… चखा जीभ ने आनंद हृदय में आएगा..सुना कान से आनंद यहा आएगा..बच्चे की पप्पी लेंगे तो होठों में आनंद नही आएगा, हृदय में आनंद आएगा..तो मानना पड़ेगा की पाँचवा शरीर आनंद मय है…

ये एकदम दिव्य ज्ञान है …ये ज्ञान सुनने मात्र से हज़ारो कपिला गौ-दान करने का फल होता है..इस ज्ञान में 13 निमिष  शांत हो जाए तो जग दान करने का फल होता है.. इस ज्ञान में कोई 17 निमिष स्थिति हो  जाए तो बाजपेयी यज्ञ  का फल होता है… 1 मुहूर्त अथवा एक पहेर इस ज्ञान में एकाकार हो जाए तो अश्वमेघ यज्ञ  का फल होता है..

बहोत उँचा ज्ञान सुन रहे हो…इस दिव्य ज्ञान को सुनने मात्र से जगत दान करने का फल, सारे तीर्थों में स्नान करने का फल हो जाता है…सारे यज्ञ  करने का फल, सारे पितरों का तर्पण कर के तृप्त करने  का फल हो जाता है ये वो दिव्य ज्ञान है..
ऐसा दिव्य ज्ञान के सत्संग में कोई व्ही व्ही आई पी  भी आए तो अब पिछे बिठाना ता की औरों को डिस्टर्ब ना हो..कई पंतप्रधान भी आए थे ये दिव्य सत्संग सुनने को..मेरे दिल में सभी के लिए प्यार है तो मैं अटल जी की भी क्लास ले लिया था.. खुश हो जाते की बापू ने अपना माना..
दिव्य प्रेरणा पुस्तक में  अटल जी का अनुभव लिखा है ..इस पुस्तक  में एक मंत्र लिखा है, उस मंत्र को बोल कर दूध में देखे और पिये तो बुध्दी बढ़ेगी यश बढ़ेगा.. उस का महत्व पढ़ लेना ..
तो कलकत्ते की काली माता ने गदाधर  पुजारी को समझाया की 5 शरीरो के पार जो चैत्यन्य  आत्मा है, जो  सदा निर्भय है..उस का अनुभव राम जी का है, कृष्ण जी का है..तुम को गुरु की कृपा मिलेगी तो तुम को भी वो ही अनुभव होगा … गदाधर पुजारी ने तोता पुरी गुरु से दीक्षा ली..सत्संग सुना..गुरु जी की कृपा हजम की ..जो राम का आत्मा है वो मेरा आत्मा है; जो कृष्ण का आत्मा है वो मेरा आत्मा है ऐसा अनुभव किया….गुरु की कृपा मिलेगी तो तुम को भी ये अनुभव होगा..
घड़े के आकाश, मकान का आकाश महा आकाश का है.. तरंग अपने को पानी माने और बोले की ‘मैं  तो सारा समुद्र हूँ’ तो सच्ची बात है ..ऐसे जीव अपने को जीव नही, आत्मा माने…मैं परमात्मा  का हूँ, परमात्मा मेरे है.. दुख मेरा नही,सुख  मेरा नही..दुख सुख आ के चले जाते..दुख सुख मन की वृत्ति है.. बीमारी भी मेरी नही ..बीमारी आ के चली जाती..बीमारी भी शरीर की है…मन बदलता उस को मैं जानता हूँ..छोटे  थे तब 4 पैसे की चीज़ कोई छिन लेते तो रोते ऐसे थे बचपन में …ऐसा अब नही है ..अब करोगे ऐसा? तो बचपन की बेवकूफी मर गयी …सुख दुख मर गया..ये सब मरते, लेकिन  तुम मरते हो क्या?… तुम वो निर्भय आत्मा है… डरो नही… हो हो के क्या होगा? मर जाएगा तो शरीर मरेगा… आत्मा को परमात्मा भी नही मार सकता ..क्यो की परमात्मा का आत्मा और मेरा आत्मा एक है…तरंग की आकृति को तो समुद्र मार देगा.. लेकिन पानी को समुद्र मार सकता है क्या? …घड़े को तो कोई भी तोड़ देगा, लेकिन घड़े के आकाश को कोई तोड़ नही सकता है..भगवान भी नही तोड़ सकता..महा आकाश भी नही तोड़ सकता….
ऐसे आत्मा को भगवान भी नही मारते…शरीर तो भगवान भी नही रखते… कृष्ण भगवान का शरीर नही रहा… राम भगवान का शरीर नही रहा.. ऐसे हमारा शरीर तो चला जाएगा लेकिन हम नही मरेंगे… इस प्रकार का ज्ञान गदाधर  पुजारी को तोता पुरी गुरु से  मिला .. गदाधर  पुजारी को साक्षात्कार हुआ…राम कृष्ण परमहंस बन गये!
ब्राम्ही स्थिति प्राप्त कर कार्य रहे ना शेष…मोह  कभी ना ठग सके इच्छा नही लवलेश…पूर्ण गुरु कृपा मिली पूर्ण गुरु का ज्ञान…आसुमल से हो गये….उम्म्म्म…  मैं उन का नाम नही लेता हूँ..आप समझ गये ? :)   (सांई  आशाराम…)

गदाधर पुजारी ने आज्ञा मानी काली माता की … गदाधर  में  से राम कृष्ण परमहंस बन गये..उन के शिष्य नरेंद्र में से विवेकानंद बने…
इस को आत्म ज्ञान बोलते…. ये दिव्य ज्ञान  है..
आत्म ज्ञानात परम ज्ञानम न मूच्यते (आत्म ग्यान से बड़ा कोई ग्यान नही)
आत्मसुखात परम सुखम न मूच्यते (आत्म सुख से बड़ा कोई सुख नही)
आत्म लाभात परम लाभम न मूच्यते (आत्म लाभ से बढ़कर कोई लाभ नही)
आत्म ज्ञान, आत्म लाभ, आत्म सुख मिले इसलिए वामदेव गुरु से पार्वती को दीक्षा दिलाई शिव जी ने..ऐसे तो शिव जी भी दीक्षा दे सकते थे लेकिन जैसे डॉक्टर अपने घर के मरीज़ो का इलाज नही करते ऐसे शिव जी ने पार्वती को स्वयं ज्ञान नही दिया..मैने अपने भाई को दूसरे महाराज  से दीक्षा दिलाई..
 अर्जुन ने भगवान को पूछा : आप बोलते महान आत्मा बनता है..सब से बड़ाई है ब्रम्‍ह ज्ञानी की .. स्थिति प्रज्ञ महा पुरुष  की आप महिमा गाते..तो ऐसा क्या है…
इंद्र भी जिस का आदर करते…देवता जिस के दर्शन कर के भाग्य बना लेते…साधारण आदमी भी स्थिति प्रज्ञ  के दर्शन और वचन सुन कर  अपना भाग्य बना लेता.. पाप नाश कर लेता… कई योग्यता का धनी हो जाता है… ऐसे संत पुरुष परमात्मा में  विश्रांति  पा कर बोलते तो वो वाणी सत्संग हो जाती है..
सामान्य आदमी बोलता है तो बोलना हो जाता है..
नेता , प्रोफ़ेसर बोलता तो भाषण हो जाता..
पोथीवाले पंडित बोलते तो कथा हो जाती..
लेकिन परमात्मा में विश्रान्ति पाए हुए महा पुरुष जब बोलते तो सत्संग हो जाता है…
एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनी आध
तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध..
करोड़ो करोड़ो काले कौवे, पाप संस्कार मिट जाते है सत्संग सुनने से…सत्संग से जो विवेक होता है वो दुनिया के सारे स्कूल कॉलेज यूनिवर्सिटी, विश्व विद्यालयो से वो विवेक नही होता जो सत्संग से होता … रामायण में आता है बिना सत्संग के विवेक नही होता…

इस ब्रम्हज्ञान के सत्संग में विश्रान्ति मिल जाए तो उस ने सारे तीर्थों में स्नान कर लिया… स्नातम तेन सर्व  तीर्थम
उस ने सब कुछ  दान कर डाले.. दातम तेन सर्व दानम्  l
उस ने सारे यज्ञ  कर लिए .. कृतम  तेन सर्व यज्ञम  l
ये न क्षणम मन ब्रम्‍ह विचारें स्थिरम कृत्वा ll

उस ब्रम्‍ह परमात्मा के विचार में अपने मन को विश्रान्ति दिलाई; उस ने सारे तीर्थो में स्नान कर लिए..सब कुछ  दान कर लिया..उस ने सारे पितरो को तृप्त कर दिया…

भगवान राम के गुरु वशिष्ठ  जी कहते है की : राम ! मैं गंगा किनारे दिन में साधना करता और शाम को शिष्यो को शास्त्र ज्ञान और सत्संग सुनाता …एक दोपहेरी को हम वृक्ष के नीचे बैठे थे ..गंगाजी और तमाल आदि वृक्षो की शांत शोभा देख ही रहे थे की इतने में  आकाश में  दिन दहाड़े प्रकाश पुंज देखा…जान लिया की साक्षात शिव जी माँ पार्वती जी के साथ पधार रहे है…मन ही मन प्रणाम किया..आसन लगाया… अर्घ्य पाद से पूजन किया..

देखो आवभगत कैसे की जाती है..क्षेम कुशल कैसे पुछा  जाता है..

शिव जी ने पुछा  :  मुनि शार्दुल तुम्हारी तपस्या कैसी है ? आप का मन आप के आत्मा में विश्रान्ति तो पाता है ना? कैसा है आप का चित्त ? आप का चित्त  अपने मूल स्थान में विश्रान्ति तो पाता है ना? …राग द्वेष आप के उपर हावी तो नही है ना? ..अपने चिदघन चैत्यन्य  स्वभाव में तृप्त तो है ना?

वशिष्ठ जी बोले : हे महादेव एक बार भी कोई  शिव कहेता है तो उस का अ-शिव हट जाता है… सब आनंद है, तृप्ति है ..हे सांब सदाशिव आप मिले है तो मुझे ख़ास गुह्य  प्रश्न पुछने का मन हुआ है..आप सहेमती दे तो माँ पार्वती और अरुंधती आपस में सत्संग करने जाए..बुध्दी मती देव पत्नी पार्वती और ऋषि पत्नी अरुंधती विचार विमर्श करने चली गयी..

वशिष्ठ जी बोले : हे देवाधिदेव महादेव ऐसा कौन सा  देव है जिस की उपासना करने से मन की कुटिलता, चित्त की चंचलता मिट कर जीव अपने दोषो से छूटकारा पा कर मनुष्य जीवन सफल कर सकता है,  दोषो से उपर उठ सकता है… विधी वचन तो बहोत है की ये करो, ये मत करो.. ये धर्म है पता होता है फिर भी हमारी प्रवृत्ति नही होती.. ये अशुद्ध  है, पाप है समझते  फिर भी हम बचते नही…क्यूँ  नही बचते की सुख की लालच से अथवा दुख के भय से झूठ कपट में हम फिसल जाते तो ऐसा कौन सा देव है जिस की उपासना करने से जीव सुख की लालच से  अथवा दुख के भय से  बचे… बुध्दी के राग द्वेष से बचे ..इंद्रियो के आकर्षण से बचे..मन की चंचलता से बचे..

बुध्दी  का राग द्वेष मिट जाए  तो बुध्दी बलवान  होती..फिर मन को नियंत्रित करती…फिर मन के आकर्षणों  में बुध्दी नही फसती.. शरीर स्वस्थ होता, मन प्रसन्न रहेता है और बुध्दी में राग द्वेष नही होता तो बुध्दी में चमचम चमकता है परमात्म ग्यान ..इतना सरल है! इतना सुगम है परमात्म ग्यान …केवल ये थोडासा समझ में आ जाए तो..और करने लगे तो ईश्वर प्राप्ति बहोत  सरल है…

शिव जी और वशिष्ठ जी का संवाद वशिष्ठ जी राम जी को सुना रहे.. मैं आप को सुना रहा हूँ…
ऐसा कौन सा देव है जो शीघ्र प्रसन्न हो और हमारा परम मंगल हो जाए..
भगवान चंद्र शेखर बोले : तुमने सभी के कल्याण वाला प्रश्न पुछा  है..सभी संप्रदाय के लिए परम मंगलकारी प्रश्न पुछा है..हे मुनि शार्दुल स्वर्ग में जो देव है वो भी वास्तविक देव नही.. सृष्टि हुई तब से कल्प के आरंभ से जो देव स्वर्ग में है उन को आजानू देव बोलते …दूसरे योग कर्म कर के देवता बनते उन को कर्मज  देव बोलते.. तीसरे देव ब्रम्ह ज्ञानी  गुरुओं  के सत्संग सुनते, साधक बन जाते… साधक  साध्य तक जल्दी पहुँच जाते है..ये धरती के देवता है..

मुझे बहोत  प्रसन्नता है की मेरे साधक जीतने सहज में  रहते,  दुख सुख के सिर पर पैर रखने मे सफल हो जाते,  दीक्षा के बाद साधकों में माधुर्य  आ जाता है, मेरे साधक जीतने  स्वाभाविक  रहेते है इतने नीगुरे नही रहेते..

दिले तस्वीरे है यार जब भी गर्दन झुका ली मुलाकात कर ली
बंदगी का था कसूर बंदा मुझे बना दिया।
मैं खुद से था बेखबर तभी तो सिर झुका दिया।।
वे थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था।
आता न था नजर तो नजर का कसूर था।।

मौलाना जलालौद्दीन रोमी ने आत्म शांति के लिए बहोत  कोशिश किये … फकीर मिलते ही साध्य को पा लिया..उस ने लिखा : ये इंसान ! पचासो वर्ष की नमाज़ अदा  करने से 2 क्षण फकिरो का सत्संग तुझे बुलंदियो पर पहुँचा देगा..

श्रीकृष्ण ने कहा : जल से भरे हुए जलाशय वास्तविक तीर्थ नही, धातु पत्थर की  मूर्ति वास्तव में देव नही.. उन तीर्थो की मूर्तियों की सेवा करने से कालांतर में पुण्य लाभ होता है.. लेकिन ब्रम्‍हवेत्ता संत के सत्संग से पुण्य लाभ , ग्यान  लाभ,  भगवत प्राप्ति का साफ सुथरा मार्गदर्शन मिलता है ..देवता बोलते नही, संत  बोलते भी है.. आप के कल्याण का संकल्प करते… सारे पूजा स्थलो की यात्रा का  फल ये है की सत्संग में पहुँचा दिया…

धरती के देवता कौन है जो सत्संग सुनते वे धरती के देवता है..अंतरात्मा का रस पाते पाते अमरता की यात्रा करते वे धरती के देवता होते है…सत्संग के लिए गाड़ी मोटर से उतर के एक एक कदम चल के  आते तो एक एक यज्ञ  का पुण्य होता है..भक्ति का मीटर चालू हो जाता है..सत्संग सुनते तो 72 करोड़ 72 लाख नादियां  पावन होती.. सप्त रंग , सप्त धातु पावन हो जाते है ….सत्संग में  आने से पहेले खून परीक्षण करने दे फिर सत्संग में आए और 2/3 सत्संग करने के बाद फिर से खून परीक्षण करे तो एक घन मिली रक्त में 1600 श्वेत कण बढ़ जाते है…
ये तो परीक्षण के द्वारा पता चलता , लेकिन जो परीक्षण में  नही आ सकता वो तो अमूल्य है ..किसी का भी कल्याण मंगल करना चाहे तो उस को  सत्संग में  ले आओ…
सत्संग में बुलाया और व्यक्ति नही आया , विषय विकार से सुख चाहता तो समझो वो बड़ा कंगाल है..

शिव जी बोलते है : इंद्र देव , वरुण देव भी वास्तविक देव नही.. ब्रम्हा जी  भी देव नही..विष्णु भी देव नही…साक्षात  शिव जी बोलते मैं शिव जी भी वास्तविक देव नही हूँ …लेकिन मुझ में,  विष्णु में,  ब्रम्‍हा में और कीड़ी में भी जो चिद्घन चैत्यन्य  है वो वास्तविक देव है….


दूसरा कहे तो शिव भक्त उस की हालत बुरी कर देते..लेकिन साक्षात शिव जी कहेते अब क्या करेंगे ..मेरे ईष्ट देव शिव जी थे…साधना करता तो अंदर से आवाज़ आती की गुरु के चरणों  में जाओ , मैं तुम्हे वहां  मिलूँगा..गुरु कृपा से जाना की वास्तविक देव वो ही है- जो देवोके देव  महादेव का आत्मा और मेरा आत्मा एक है …

13 निमिष उस परमात्म देव मे शांत होने से गौ-दान का फल होता है …. 100 निमिष उस परमात्म देव में विश्रांति पाने से अश्वमेघ यज्ञ का फल होता है  ..आधी घड़ी से 1000 अश्वमेघ यज्ञ  का पुण्य होता है..आधी घड़ी   साडे 22 मिनट की होती ..इस देव में एक घड़ी शांति पाने से राजसूय यज्ञ  का फल होता है.. मध्यान्ह काल तक- सुबह से दोपहेर तक  परमात्मा मे स्थिति होती है  तो 1 लाख राजसूय यज्ञ  करने का फल होता है..
ऐसा वाल्मीकि रामायण में लिखा है.
ओंकार मंत्र की बड़ी महिमा है..
(पूज्यश्री बापूजी ने ओंकार मंत्र के 19 लाभ बताए..ऋषि प्रसाद के अप्रैल 2011 के अंक में इस का सुंदर वर्णन है )
आप के बुध्दी  के सामने भगवान हो तो वो ब्रम्ह ग्यान  बन जाता है..
आप के प्रीति के सामने  भगवान है तो वो प्रेमा भक्ति बन जाती है..
आप के  कर्म के सामने भगवान का उद्देश्य है तो वो आप का कर्म योग बन जाता है..
अपनी उन्नति चाहते हो तो 5 बातों का त्याग कर दो:
1) अपने को कोसना छोड़  दो : क्या करे अपने भाग्य  में नही..अपन ग़रीब है..पापी है..अपन ऐसे है वैसे ऐसा निराशावादी सोच छोड़  दो..
निराशावाद का त्याग
2) दीनता का त्याग : मुझे कोई बोलता की आशीर्वाद दो तो मैं उस को आँख दिखाता हूँ..अर्रे ये तो ऐसी बात है की सूर्य को बोले रोशनी दो, रोशनी तो जुगनू से मांगी  जाती है!..गंगाजी को बोले पानी दो..संतों  से आशीर्वाद माँगा जाता है क्या? बोले ‘जुग जुग जियो इतना दक्षिणा दो’ तू स्वयं मर जाएगा आशीर्वाद देनेवाला!..ये तो मूर्खो का काम है..तो दीनता का त्याग करो..

3)आलस्य का त्याग
4)कटुता का त्याग
5)क्रोध का त्याग

अक्रोध, मधुरता, उद्यम, साहस, ओंकार का जप परमात्मा के साथ सीधा संबंध जोड़ देगा..

आप के जीवन में  मोह  सभी व्याधियो का मुल है..मोह माने बाहर से सुखी होने का प्रयास..इस को भव का शूल कहेते..  ये साधना(ओंकार की साधना) करोगे तो परमात्म प्रेम प्रगट होगा..आप सब के हितेशी होते और आप का हीत  होता है..आप आनंदित रहेते..
मोह  में सीमित जीवन होता है..सत्संग से विशाल जीवन बन जाता है..भोग से आदमी भोगी होता है , अपनी स्वार्थ की सोचता है..और ओंकार की साधना से ,प्रेमाभक्ति से आदमी भक्त बन जाता, योगी बन जाता है..संत बन जाता है..

आप रोज ओंकार की 15 मिनट की साधना करो तो बड़ा फ़ायदा है…सुबह दोपहेर शाम करो 15-15 मिनट तो बहोट अच्छा..आप जीतने उन्नत होते जाएँगे उतना आप के कुटुंबियों का भला होता जाएगा..आप के रिश्तेदारों  का भला होगा और आप से मिलनेवालों का भला होगा..बिल्कुल पक्की बात है..
मोरादाबाद में सत्संग के निमित्त किसी ने ज्योति जगवाई..वो ज्योत किसी ने घर रखवाई और आशारामायण का पाठ, कीर्तन और ध्यान किया.. घर में बहोत इज़ाफा हुआ, प्रसन्नता हुई..कली के दोष मिटे ..घर वाले खुशहाल हुए..पड़ोसी ने कहा ये ज्योत हमारे घर 7 दिन रहेगी..फिर दूसरे पड़ोसी, तीसरे..चौथे ऐसे करते करते पूरा मोरादाबाद दीप ज्योति से आनंदित , आल्हादित , निरोगी और मनोकामना पूर्ति करने में सक्षम होने लगा..लेकिन 1 ज्योत किस किस के घर कहा तक जाए?…हरिद्वार में दूसरी ज्योति जगवा के गये… अब 2-2 ज्योतियां  चलती है..पूरब पश्चिम  उत्तर दक्षिण चारो तरफ ..फिर भी लोगों की माँग ऐसी बढ़ गयी की नवंबर माह की 17 तारीख 2013 तक ज्योति का ऑर्डर बुक हो गया है!
किसी के घर ज्योति का ऑर्डर बुक था..साधक ने कहा की परसो आप के घर ज्योति आएगी..तो घरवाली माई ने कहा, ‘नही नही..मेरे घर कैसे ज्योति लाऊं ?..मेरा बच्चा अपहरण हो गया है..हम सब रो रहे..ये उत्सव हमारे घर कैसे होगा?’
साधक ने कहा, ‘अरे माई ! जिस के घर ज्योति जाती है वहा सुख जगमगाता है..कितने इंतजार के बाद ये शुभ घड़ी तुम्हारे नसीब हुयी की ज्योत तुम्हारे घर आ रही … बेटा चला गया है – किडनॅप हो गया है लेकिन तुम ज्योति आने दो घर में ..पुण्य बढ़ने दो..पाप मिटने दो..देख लेना चमत्कार क्या होता है…देख लेना बापू क्या करते है..’
उस माई ने कहा, ‘अच्छा ज्योति की जो तिथि है उस दिन आए ज्योति हमारे घर में..लेकिन मेरा बेटा अपहरण हो गया है..’
बोले , ‘माई सब भला होगा..’
ज्योति जिस घर से निकल के इस घर आनी है, उस समय जो किडनॅप कर के चले गये थे वो उस लड़के को टॉर्चर कर रहे थे की 50 लाख बिना तू ज़िंदा घर नही पहुँचेगा…हाः हाः हाः..’ कर के..चलो 50 लाख का मुर्गा फँसा है…खुशी खुशी में 5-10 शराब की बोटले खोली और पीने लगे..पीते पीते सब बेहोश हो गये..आउट हो गए ..अपहरण किए हुए बेटे के गले में बापू का लोकेट पड़ा था… मानो बापू कहे रहे की अब क्या देखता है..उठ धीरे धीरे..और बाहर चला जा …..बाहर से कुण्डा लगा के तू भाग जा  ..तू अपने घर पहुँच…वो लड़का ऑटो कर के कैसे भी कर के अपने घर पहुँचा…इधर ज्योति घर पहुँची और उधर बेटा ‘माँ माँ’ करता हुआ घर मे आया..ज्योति के ज्योत जगानेवालों के चारो तरफ जयकारा हुआ..
आगरा वालों ने इस ज्योत की महिमा जानी … आगरा सत्संग के सुबह के सत्र में आगरा में 3 ज्योतियां  जगमगाई..शाम के सत्र में 7 ज्योतियां  जगमगाई है…और 8 तारीख को भी कई ज्योतियां  जगमगाई है …. आगरा और आसपास के इलाक़े के लोग अपने घरों में भक्ति की , ज्ञान  की, प्रभु प्रीति की ज्योत जगमगाएँगे…
( पूज्यश्री बापूजी के परम पावन कर कमलो से सभी ज्योतियो का दीप  प्रागट्य हुआ…ब्रांहणों ने वैदिक मंत्र घोष किया…
ओम श्री परमात्मने नमः
ओम दीप ज्योति परब्रम्‍ह
दीप ज्योति जनार्दनम
दीपो हरतू मे पापं
दीपज्योति नमोस्तुते

शुभम करोती कल्याणम  आरोग्यम सुख संपदा
शत्रु बुध्दी  विनाशंच  दीप ज्योति नमोस्तुते

आत्म ज्योति की महिमा भगवान ने कही है लेकिन दीप ज्योति की भी महिमा पुराणो में शास्त्रों में आती है…

…इन दिनों में दीप ज्योति जहां  भी हो वे लोग रात को खजूर भीगा के अगर शाम को कार्यक्रम है तो सुबह खजूर भीगा दे..3 से 5 दाने खजूर के प्रसाद में बाटे.. अगर बाटना चाहे तो ..लेकिन 5 से ज़्यादा नही..और मिठाइयां  बाटने की आदत नही डालना..खोपरा+मिशरी अथवा खजूर अथवा सीजन के अनुसार जैसा भी प्रसाद बनाना हो तो बनाओ ..भक्तो को तो ज्योति से लाभ होता ही है…

इस ज्योति में शीतलता चाहिए तो एरंडीए का तेल, कपासिया का तेल, सोयाबीन का तेल अथवा नारियल का तेल डाले…और गरमी चाहिए तो तिलों का तेल, सरसो का तेल ये गरमी करेगा..
ज्योति से आरोग्य  बढ़ेगा और घर का हवामान भी सुंदर होगा..भक्तिभाव भी बढ़ेगा.. दीप ज्योति घर में रखी उतने दिन ब्रम्हचर्य का पालन किया तो और ज़्यादा प्रभाव पड़ेगा….. मौन , श्वासोश्वास  का जप ,  आशारामायण का  पाठ, हे प्रभु आनंद दाता का पाठ आदि करे..

तांशु के अनुभव का वीडियो दिखाया जा  रहा है..

बीरबल  के जमाने में सारस्वत्य मंत्र था तो बीरबल चमका..लेकिन इस जमाने में भी तो सारस्वत्य मंत्र है! घर घर में बीरबल  बन रहे है!!
उस जमाने में शरद पूनम की  रात को श्रीकृष्ण के गोप गोपियां  अमृतपान किए थे ..अभी इस जमाने में बापू के साधक गोप गोपियां भी  अमृत पान  कर रहे है…उस जमाने में श्रीकृष्ण को स्वयं बंसी बजानी पड़ती थी…इस जमाने में हमारे बच्चे बंसी बजाते, काम वोही हो रहा है!