शुक्रवार, जनवरी 27, 2012

दुख का तो उपकार माने बेटे


एक बड़ा प्रसिध्द राज नेता था बंगाल में ….बड़ा जाना-माना था..धर्म परायण व्यक्ति था..अश्विनी दत्त बंगाल के प्रसिध्द राज नेता थे..उन के गुरु राज नारायण थे.
उस के गुरु को लकवा मार गया..3 महीने के बाद अश्विनी को पता चला…3 महीने से गुरु को लकवा मार गया, मुझे पता नही चला सोच कर विव्हल हो कर भागता भागता आया गुरु के पास…ज्यो ही गुरु के पास पहुँचा..प्रणाम करने जाता है तो गुरु का एक हाथ तो लकवे से निकम्मा  हो चुका था..गुरु ने दूसरे हाथ से पकड़ के उठाया..
बोले, ‘बेटा, कैसे भागे भागे आए हो…देखो भागा तो शरीर..और दुख हुआ मन में..लेकिन इन दोनो को तुम जानने वाले हो..ऐसा कर के गुरु ने सत्य स्वरूप ईश्वर आत्मा की सार बातें बताई..सुनते सुनते वो तो दुखी आया था, चिंतित हो के आया था…लेकिन गुरु की वाणी सुनते सुनते उस का दुख चिंता गायब हो गया..3 घंटे कैसे बीत  गये पता ही नही चला…
हसने लगा,”गुरु जी 3 घंटे बीत  गये!मुझे तो पता ही नही चला..मैं तो बहोत विव्हल  हो के आया था आप का स्वास्थ्य पुछने के लिए..लेकिन आप को ये लकवा मार गया इस की पीड़ा नही?..दुख नही? हम तो बहोत  दुखी थे और आप ने तो मेरे को 3 घंटे तक सत्संग का अमृतपान  कराया…”
गुरु ने अश्विनी दत्त(बंगाल के प्रसिध्द नेता) के पीठ पे थपथपाया..बोले, “पगले पीड़ा हुई है तो शरीर को..लकवा मारा है तो शरीर को..इस हाथ को..लेकिन दूसरा हाथ मौजूद है, पैर भी मौजूद है, जिव्हा भी मौजूद है..ये उस प्रभु की कितनी कृपा है!..पूरे शरीर को भी तो लकवा हो सकता था..हार्ट एटैक हो सकता था.और 60 साल तक शरीर स्वस्थ रहा..अभी थोड़े दिन..3 महीने से ही तो लकवा है …ये उस की कितनी कृपा है की दुख भेज कर वो हम को शरीर की आसक्ति मिटाने का संदेश देता है..सुख भेज कर हमें उदार बनाने का और परोपकार करने का संदेश देता है..हम को तो दुख का आदर करना चाहिए..दुख का उपकार मानना चाहिए..बचपन में हम दुखी होते थे जब माँ-बाप ज़बरदस्ती स्कूल ले जाते थे..लेकिन वो दुख नही होता तो आज हम विद्वान भी नही हो सकते थे..ऐसा कोई मनुष्य धरती पर नही है जिस का दुख के बिना विकास हुआ हो…दुख का तो खूब खूब धन्यवाद करना चाहिए…और दिखता दुख है, लेकिन अंदर से सुख, सावधानी और विवेक से भरा है.. और मुझे हरिचर्चा में विश्रान्ति दिलाया.. सत्संग करने के भागा दौड़ी से आराम करना चाहिए था, लेकिन मैं नही कर पा रहा था…तुम लोग नही करने देते थे..तो भगवान ने लकवा कर के आराम दिया..देखो ये उस की कितनी कृपा है..भगवान की और दुख की बड़ी कृपा है..माँ-बाप की कृपा है तो माँ बाप का हम श्राध्द  करते, तर्पण करते..लेकिन इस दुख देवता का तो हम श्राध्द तर्पण भी नही करते..क्यूँ की वो बेचारा आता है, मर जाता है..रहेता नही है…अभी ठीक भी हो जाएगा, अथवा शरीर के साथ चला जाएगा..माँ बाप तो मरने के बाद भी रहेते है..ये बेचारा तो एक बार मर जाता है तो फिर रहेता ही नही..तो इस का तो श्राद्ध  भी नही करते, तो इस का तो उपकार माने बेटे अश्विनी…”
अश्विनी देखता रहे गया !
गुरु ने कहा, “बेटा ये तेरी मेरी वार्ता जो सुनेगा वो भी स्वस्थ हो जाएगा.. बीमारी शरीर में आती है लाला!..दुख  तो मान में आता है …चिंता चित्त में आती है..तुम तो निर्लेप  नारायण के अमर आत्मा हो!”
हरि ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम ओम प्रभुजी ओम.. माधुर्य ओम..मेरे जी ओम ओम..प्यारे जी ओम…हा हा हा हा

मनुष्य को भगवान ने कितने कितने  अनुदान दिए है..ज़रा सोचते है तो मौन हो जाता है! मन विश्रान्ति में चला जाता है…जब तेरा गुरु है, और तू बोले की मैं परेशान हूँ, मैं दुखी हूँ तो तू गुरु का अपमान करता है..मानवता का अपमान करता है..जो बोलते है ना मैं दुखी हूँ, परेशान हूँ  तो समझ लेना की उन के भाग्य के वे शत्रु है…अभागे लोग सोचते है मैं दुखी, परेशान हूँ..समझदार लोग ऐसा कभी नही सोचते है…जो बोलते मैं दुखी परेशान हूँ उस के मान में  दुख परेशानी  ऐसा गहेरा उतरता जाएगा की जैसे हाथी दलदल में फँसे और ज्यों निकलना चाहे तो और गहेरा उतरे ..ऐसे ही दुखी और परेशान हूँ बोलते तो समझो वो दुख और परेशानी में हाथी के नाई  गहेरा जा रहा है..अभागा है..अपने भाग्य को कोस रहा है..
‘मैं दुखी नही हूँ, मैं परेशान नही हूँ..दुख है तो मन को है, परेशानी है तो मन को है..’ ये पक्का करे..वास्तव में मन की कल्पना है परेशानी..दुख परेशानी  तो मेरे विकास करने के लिए है  ..वाह मेरे प्रभु !
सुखम वा यदि वा दुखम स योगी परमो मतः ll

जिस वस्तु को हम प्यार करते वो प्यारी हो जाती है, जिस वस्तु को हम महत्व देते वो महत्व पूर्ण हो जाती है..जिस वस्तु को मानव ठुकरा दे वो वस्तु बेकार हो जाती है..नोइडा में जहा सत्संग हुआ था तो वहाँ खेत थे..और वहाँ अब पौने चार लाख रुपये में 1 मीटर जगह मिलती है..हे मानव तू जिस जगह को महत्व देता वो जगह कीमती हो जाती..तू जिस फॅशन को महत्व देता वो कीमती हो जाती..तू इतना सब को महत्व देनेवाला अपने आप को कोस कर अपना सत्यानाश क्यूँ करता है?

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