रविवार, जनवरी 15, 2012

असलियत बताऊं


दीर्घ तपा  ऋषी और उन की पत्नी साध्वी थी…दोनों ज्ञान ध्यान में आगे बढ़ने के लिए प्रयत्न करते…दीर्घ तपा को पावक नामक  एक बेटा हुआ..कुछ समय के बाद उस दम्पति को पुण्यक नाम का दूसरा बेटा  हुआ…वो दम्पति  इच्छा निवृत्त कर के, कंद मूल फल से व्यवहार चलाते….  प्रसन चित्त रहेते… काल चक्र चलता रहा… आत्मज्ञान पाने के बाद भी शरीर के धर्म तो होते ही है….शरीर को  बुढापा तो आता ही है…. देह धारणा कर के दीर्घतपा ने ऐसे शरीर को छोड़ा की जैसे कोई  आमिर आदमी पुराने कपडे छोड़ते ऐसे शरीर को छोड़कर ब्रम्हस्वरूप परमात्म से एकाकारता कर के ब्रम्ह में विलय हो गए….
उन की  पत्नी ने भी पति ने शरीर छोड़ा देख के अपना शरीर छोड़ा…
पुण्यात्माओं के लिए  उत्तरायण मार्ग है…. भीष्म पितामह ने उत्तरायण होने तक प्राण रोक के रखे…लेकिन पापियों के लिए क्या उत्तरायण और क्या दक्षिणायन..उन को कोई फरक नही पङता..
धर्मात्मा के लिए शरीर छोड़ते तो सूर्य लोक चन्द्र लोक को प्राप्त होते…लेकिन पापी लोग मरते तो  वासनाओ के अनुसार गिद्ध बन जाते…कबूतर बन गए ….शरीर मिला तो ठीक नही तो नाली में बह गए… ऐसे पापी के दुखो की गिनती नही…
जिन की वासनाओ की पूर्ण तृप्ति नही हुयी ऐसे धर्मात्मा  लोग दक्षिणायन में प्राण छोड़ते तो भी  चंद्रलोक में जाते… चन्द्र लोक से फिर वापस आते और अपनी वासनाओ के अनुसार जनमते…
तीसरे प्रकार के लोग होते , जिन की वासना निवृत्त हो गई है ऐसे जीव  जहां भगवान शिव,  वासुकी नाग आदि मुक्त पुरूष हो गए उन में जाते है …
(जिन्हों ने जीते जी ब्रम्ह को पा लिया उन को ब्रम्ह लोक जाना  नही होता).. … ब्रम्ह लोक में ब्रम्ह ये बड़ा  पद है..लेकिन  ब्रम्हज्ञानी के लिए क्या ब्रम्ह लोक और क्या ब्रम्ह पद…. ब्रम्ह लोक और ब्रम्ह भी उन के मन  में एक कोने में है …..असलियत बताऊ ना तो जैसे मंसूर के साथ हुआ…जीसस  से जो व्यवहार  किया ऐसा ब्रम्हज्ञानियों से ये दुनिया व्यवहार करेगी….
घाटवाले बाबा बोलते, अपना अनुभव ज्ञानवालो  को दूसरो को नही बताना चाहिए… उचित नही है….कभी कोई  उच्च कोटि का आत्मा मिले तो  जरा सा संकेत करते…!
भगवान के नाम से मन की चंचलता से अपने को बचाए…. मन ,बुध्दि, वासना दुखदायी है… छल , छिद्र,  कपट दुखदायी है …
उमा कहूँ मैं अनुभव अपना l
एक हरी भजे , बाकि सब स्वप्ना ll

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