गुरुवार, दिसंबर 02, 2010

आयुष्यरूपी खेत के नष्ट-भ्रष्ट होने के बाद क्या होगा ?


अशनं मे वसनं मे जाया मे बन्धुवर्गो मे।
इति मे मे कुर्वाणं कालवृको हन्ति पुरुषाजम्।।
'यह मेरा भोजन, यह मेरा वस्त्र, यह मेरी पत्नी, ये मेरे बांधवगण-ऐसे मेरा-मेरा करने वाले पुरुषरूपी बकरे को कालरूपी भेड़िया मार डालता है।'
अतः गहन निद्रा से जागो। सावधान हो जाओ। मोह-ममता के बुने हुए जाल को विवेक की कैंची से काट डालो। इतने सत्संग का श्रवण, ध्यान आदि करते हो तो अब मोह ममता से ऊपर उठकर आत्मपद में पहुँच जाओ। देर क्यों करते हो ? संसार सागर में अब तक खाये गये गोते क्या काफी नहीं हैं ? देहभाव से परे होने की तलब क्यों नहीं जगती ? निश्चित जानना कि आगे की राह बड़ी मुश्किल है। समय एवं शक्ति गँवाने के बाद चाहे कितना भी रोओगे, पछताओगे, सिर कूटोगे, फिर भी कुछ न होगा। अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत। आयुष्यरूपी खेत के नष्ट-भ्रष्ट होने के बाद क्या होगा ? अतः अभी से सावधान ! आत्मवेत्ता सत्पुरुष के वचनों का मर्म हृदय में उतारकर आत्मपद की प्राप्ति कर लो। सदा के लिए सुखी हो जाओ। जीवभाव से पृथक होकर शिवत्व में विश्रांति पा लो।

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