बुधवार, अप्रैल 14, 2010

अधिक मास माहात्म्य




अधिक मास में सूर्य की संक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने के कारन इसे ‘मलमास’ (मलिन मास ) कहा गया है | भगवान कृष्ण ने इसका स्वामित्व स्वीकार केर अपना ‘पुरुषोत्तम ’ नाम इसे प्रदान किया है |

व्रत विधि :
इस मास में आँवले व तिल का उबटन शरीर पर मॉल केर स्नान करना , आँवले के पेड़ के निचे भोजन करना भगवान श्री पुरुषोत्तम को अतिशय प्रिय है , साथ ही यह स्वास्थ्यप्रद और प्रसंन्ताप्रद भी है |


इस मास में भगवान के मंदिर , जलाशय या नदी में अथवा तुलसी , पीपल आदि पूजनीय वृक्षों के सम्मुख दीप-दान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं , दुःख शोकों का नास होता है , वंशदीप बढ़ता है , ऊँचा सान्निध्य मिलता है तथा आयु बढती है |

भगवान श्री कृष्ण इस मास की व्रत विधि एवं महिमा बताते हुए कहते हैं : “इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान दान जप होम स्वध्याय , पित्रितर्पण तथा देवार्चन किया जाता है , वह सब अक्षय हो जाता है | जिन्होंने प्रमाद से मल मास को खली बिता दिया , उनका जीवन मनुष्य लोक में दारिद्र्य , पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निन्दित हो जाता है इसमें संदेह नहीं |”

सुगन्धित चन्दन , अनेक प्रकार के फूल , मिष्टान्न , नैवैद्द्य , धुप दीप आदि से लक्ष्मी सहित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें | घंटा , मृदंग , और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चन्दन से आरती करें | ये न हों तो रुई की बत्ती से ही आरती करें | इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है | चन्दन , अक्षत , और पुष्पों के साथ तांबे के पात्र में पानी रख कर भक्ति से प्रातः पूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें | अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें :


देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक |‍‌‍
गृहाणार्घ्यंमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि ||
स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेऽमिततेजसे |
नमोस्तुते श्रीयानन्त दयां कुरु ममोपरि ||


‘हे देवदेव ! हे महादेव ! हे प्रलय और उत्पत्ति करने वाले ! हे देव ! मुझ पैर कृपा केर के इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिये | तुझ स्यम्भु के लिए नमस्कार तथा तुझ अमित तेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार | हे अनंत ! लक्ष्मीजी के साथ आप मुझ पैर कृपा करें | ’

मल मास का व्रत दारिद्रय , पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है | चतुर्दशी के दिन उपवास केर अंत में उद्द्यापन करने से मनुष्य सब पापों से छुट जाता है | यदि दारिद्रय हो तो व्यतिपात योग में , द्वादशी पूर्णिमा , चतुर्दशी , नवमी और अष्टमी के दिन शोक विनाशक उपरोक्त व्रत को करना चाहिए जो उपचार मिल जाये उनसे ही यह कर ले |

मलमास में संध्योपासन , तर्पण , श्राद्ध , दान , नियम व्रत ये सब फल देते हैं | इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं |


विधिवत सेवते यस्तु पुरुषोत्तममादरात् |
कुलं स्वकीयमुद् धृत्य मामेवैष्यत्यसंशयम् ||


प्रति तीसरे वर्ष में पुरुषोत्तम मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा- भक्ति के साथ व्रत , उपवास , पूजा आदि शुभकर्म करता है , निःसंदेह वह अपने समस्त परिवार के साथ मेरे लोक में पहुँच कर मेरा सानिध्य प्राप्त करता है


इस महीने में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप , सत्संग व सत्कथा –श्रवण , हरिकीर्तन , व्रत, उपवास स्नान , दान या पूजनादि किये जाते हैं , उनका अक्षय फल होता है और व्रती के संपूर्ण अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं | निष्काम भाव से किये जाने वाले अनुष्ठानों के लिए यह अत्यंत श्रेष्ठ समय है| देवी भगवत के अनुसार यदि दान आदि का सामर्थ्य न हो तो संतों- महापुरुषों की सेवा सर्वोत्तम है , इससे तीर्थ स्नानादि के सामान फल होता है |



अधिक मास में वर्जित


इस मास में सभी सकाम कर्म एवं व्रत वर्जित हैं |जैसे – कुएँ , बावली , तालाब और बाग आदि का आरम्भ तथा प्रतिष्ठा , नवविवाहिता वधु का प्रवेश , देवताओं का स्थापन (देवप्रतिष्ठा) , यज्ञोपवित संस्कार , विवाह , नामकर्म , माकन बनाना , नए वस्त्र और अलंकार पहनना आदि |


अधिक मास में करने योग्य


प्राणघातक रोग आदि की निवृत्ति के लिए रुद्रजाप आदि अनुष्ठान , दान व जप कीर्तन आदि , पुत्रजन्म के कृत्य , पित्रिमरण के श्रद्धादी तथा गर्भाधान , पुंसवन जैसे संस्कार किये जाते हैं |

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