शनिवार, नवंबर 05, 2011

भीष्म पंचक व्रत ( 06 से 10 नवंबर 2011 तक )



महाभारत युद्ध के बाद जब पांण्डवों की जीत हो गयी तब श्री कृष्ण भगवान पांण्डवों को भीष्म पितामह के पास ले गये और उनसे अनुरोध किया कि आप पांण्डवों को अमृत स्वरूप ज्ञान प्रदान करें. भीष्म भी उन दिनों शर सैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे. कृष्ण के अनुरोध पर परम वीर और परम ज्ञानी भीष्म ने कृष्ण सहित पाण्डवों को  राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया. भीष्म द्वारा ज्ञान देने का क्रम कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पांच दिनों तक चलता रहा. भीष्म ने जब पूरा ज्ञान दे दिया तब श्री कृष्ण ने कहा कि आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गया है. इन पांच दिनों को भविष्य में भीष्म पंचक व्रत के नाम से जाना जाएगा. यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी होगा |


भीष्मजी को अर्ध्य देने से पुत्रहीन को पुत्र प्राप्त होता है ..... जिसको स्वप्नदोष या ब्रह्मचर्य सम्बन्धी गन्दी आदतें या तकलीफें हैं, वह इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्ध्य देने से ब्रह्मचर्य में सुदृढ़ बनता है | हम सभी साधकों को इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्ध्य जरुर देना चाहिए और ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए प्रयत्न करना चाहिए | 


सूर्योदय से पूर्व उठना और पवित्र नदियों का स्मरण करते हुए संभव हो तो तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए | स्नान के बाद निम्न प्रार्थना करते हुए चन्दन  और तिल मिश्रित जल से भीष्मजी को अर्ध्य देना चाहिए : 
"गंगाजी के सुपुत्र, आजीवन ब्रह्मचर्य पालन करनेवाले पितामह भीष्म को यह अर्ध्य अर्पण है, हमें ब्रह्मचर्य में सहायता करना"


भीष्म पंचक व्रत का पूर्ण विवरण  जानने हेतु कृपया आश्रम से प्रकाशित एकादशी महात्म्य नाम की वीडियो सीडी देखें |