सबसे जरूरी काम क्या है ?

निष्काम कर्म करने से हृदय शुद्ध होता है। शुद्ध हृदय से आत्मा का ज्ञान होता है। भलाई के काम खूब करते रहो। किसी स्वार्थ से जो सेवा की जाती है, वह उत्तम सेवा नहीं होती। भले ही कोई कितना भी दिखावा करके अपने को निष्कामी साबित करे परंतु ईश्वर सब देखता है, वह सबको यथायोग्य फल देता है। आम बोओगे तो आम मिलेंगे।
इस संसार में रोते हुए आये हो परंतु अब कुछ ऐसा सत्कर्म करो कि भगवान के धाम को हँसते हुए जा सको। दूसरों का भला करोगे तो तुम्हारा भी भला होगा। भलाई करने के लिए सबके प्रति प्रेम पैदा करो। शुद्ध प्रेम से वर्षों का वैर विरोध भी नष्ट हो जाता है। प्रभु भी प्रेम से ही प्रकट होते हैं।
हरि व्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम में प्रगट होहिं मैं जाना।।
(श्रीरामचरित. बा. का. 148.3)
यदि नरक में जाना हो तो बुरे कर्म और बुरे संकल्प करो और यदि मुक्ति पानी हो तो निष्काम भाव से सत्कर्म करो तथा संतों का संग करो। हम अन्य सभी प्रकार की बातें सोचते हैं परंतु आत्मकल्याण के बारे में नहीं सोचते। अन्य काम कर रहे हो परंतु अपने अत्यावश्यक कामों में यह भी लिख लोः हमें इस जन्म-मरण के चक्र से छूटना है।
विचार एक बीज है जो भविष्य में एक विशाल वृक्ष के रूप में परिवर्तित होगा। आज का विचार और पुरूषार्थ ही कल का प्रारब्ध है। इसलिए विचारशक्ति पर विशेष ध्यान देना चाहिए। विचारों को पवित्र रखना चाहिए।
विद्या किसको कहते हो ? विद्या का मतलब यह नहीं कि बड़ी-बड़ी उपाधियाँ प्राप्त कर लीं और उनका दुरूपयोग करने लगे। वह विद्या किस काम की जो जीवन की वास्तविकता को, मनुष्य जीवन के लक्ष्य को न बता सके। विद्या का अर्थ है वह प्रकाश जिससे हमें धर्म-अधर्म तथा सत्य-असत्य का पता लगे, जिसको जीवन में उतारने से हमें सत्य की ओर चलने की प्रेरणा मिले और सच्चा सुख प्राप्त हो।
यदि सच्चा सुख चाहते हो तो निष्काम कर्म और सत्संग द्वारा अपने अंतःकरण को शुद्ध करो। भलाई के काम करने से बुराई स्वतः ही छूट जायेगी। ऊँचा संग करने से कुसंग अपने आप छूट जायगा। जो मन बुराई की ओर जाता है, वह अच्छाई की ओर भी जा सकता है। नौका पानी के प्रवाह की ओर चलती है परंतु बलवान नाविक उसे पतवार के द्वारा दूसरी ओर भी मोड़ लेता है। इसी प्रकार उलटे मार्ग पर जाने वाले मन को पुरूषार्थ करके सन्मार्ग पर भी लाया जा सकता है।
सदा अंतर्मुख होकर रहो। अंतर्मुख होने से हृदय में जो वास्तविक आनंद है उसकी झलकें मिलती हैं। मनुष्य जन्म का उद्देश्य उसी आनंद को प्राप्त करना है। जिसने मनुष्य शरीर पाकर भी उसका अनुभव नहीं किया, उसका सब किया-कराया व्यर्थ हो जाता है।
प्यारे ! ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलेगा। हृदय में परमात्मा का आनंद भरा हुआ है। वृत्ति को जरा अंतर्मुख करके उसका स्वाद चखकर तो देखो।
बुरे कर्मों और संकल्पों से बचो। गुलाब के फूल की तरह सदैव खिले रहो। स्वार्थरहित होकर सत्कर्म करो। इस प्रकार निष्काम सेवा करने से भगवान के प्रति निष्काम प्रेम प्रकट होता है और जिसे यह दुर्लभ वस्तु मिलती है वह संसारचक्र से मुक्त हो जाता है।