शनिवार, मार्च 03, 2012

होली हुई तब जानिये....


होली जली तो क्या जली पापिन अविद्या नहीं जली।
आशा जली नहीं राक्षसी, तृष्णा पिशाची नहीं जली।
 झुलसा न मुख आसक्ति का, नहीं भस्म ईर्ष्या की हुई
ममता न झोंकी अग्नि में, नहीं वासना फूँकी गई।
न ही धूल डाली दम्भ पर, न ही दर्प में जूते दीये।
दुर्गति न की अभिमान की, न ही क्रोध में घूँसे पीये।।

भारतीय संस्कृति वर्ष भर के त्यौहारों एवं पर्वों की अनवरत श्रृंखला की वैज्ञानिक व्यवस्था करती है। वसंत ऋतु में आनेवाला होली का त्यौहार कूदने-फाँदने एवं प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का उत्सव है। इसका स्वास्थ्य पर उत्तम प्रभाव पड़ता है। इन दिनों पलाश के फूलों के रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की शक्ति बढ़ती है तथा मानसिक संतुलन बना रहता है, साथ ही मौसम-परिवर्तन से प्रकुपित होने वाले रोगों से रक्षा होती है। परंतु वर्तमान में रासायनिक रंगों के अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो रही हैं, जिसकी पुष्टि चिकित्सकों ने भी की है।रंगों में प्रयुक्त रसायनों का स्वास्थ्य पर क्या दुष्प्रभाव होते है ? यह जानने के लिये और  संत सम्मत होली, अद्वैत होली क्या है? जानने के लिये..
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