मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011

सत्संग से एक सामान्य कीड़ा महान् मैत्रेय ऋषि बन गया !

तुलसीदास जी महाराज कहते हैं –
एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साध की हरे कोटि अपराध।।
एक बार शुकदेव जी के पिता भगवान वेदव्यासजी महाराज कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक कीड़ा बड़ी तेजी से सड़क पार कर रहा था।
वेदव्यासजी ने अपनी योगशक्ति देते हुए उससे पूछाः
"तू इतनी जल्दी सड़क क्यों पार कर रहा है? क्या तुझे किसी काम से जाना है? तू तो नाली का कीड़ा है। इस नाली को छोड़कर दूसरी नाली में ही तो जाना है, फिर इतनी तेजी से क्यों भाग रहा है?"
कीड़ा बोलाः "बाबा जी बैलगाड़ी आ रही है। बैलों के गले में बँधे घुँघरु तथा बैलगाड़ी के पहियों की आवाज मैं सुन रहा हूँ। यदि मैं धीरे-धीर सड़क पार करूँगा तो वह बैलगाड़ी आकर मुझे कुचल डालेगी।"
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शनिवार, फ़रवरी 05, 2011

हम तो खाली तीसरी पढ़े हैं - "ज्यों केले की पात पात में पात. त्यों संतन की बात बात में बात "

 (श्री सुरेशानंदजी की अमृतवाणी) 
             पुराने सत्संगी जो हमेशा आते रहते है शिविरों में, उनको पता है कि बापूजी कई बार बोलते रहते है हम तो खाली तीसरी क्लास पढ़े है , हम तो भाई खाली तीसरी पढ़े है | अब तीसरी पढ़े है उसकी बातें आज मैं आपको बताना चाहता हूँ | तीसरी पढ़े है मतलब:
ज्यों केले के पात पात में पात,
त्यों सदगुरु की बात बात में बात |
भक्ति, योग और ज्ञान | भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग, निष्काम कर्मयोग का मार्ग | इन तीनों से जो विभूषित है,
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मंगलवार, फ़रवरी 01, 2011

पुरुषार्थ क्या है?

ऐ मनुष्यदेह में सोये हुए चैतन्यदेव ! अब जाग जा। अपने को जान और स्वावलम्बी हो जा। आत्म-निर्भरता ही सच्चा पुरुषार्थ है।
जब तुम अपनी सहायता करते हो तो ईश्वर भी तुम्हारी सहायता करता ही है। फिर दैव (भाग्य) तुम्हारी सेवा करने को बाध्य हो जाता है।
विश्व में यदि कोई महान् से भी महान् कार्य है तो वह है जीव को जगाकर उसे उसके शिवत्व में स्थापित करना, प्रकृति की पराधीनता से छुड़ाकर उसको मुक्त बनाना। ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों के सान्निध्य में यह कार्य स्वाभाविक रूप से हुआ करता है।
जैसे प्रकाश के बिना पदार्थ का ज्ञान नहीं होता, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना कोई सिद्धि नहीं होती। जिस पुरुष ने अपना पुरुषार्थ त्याग दिया है और दैव के आश्रय होकर समझता है कि "दैव हमारा कल्याण करेगा" वह कभी सिद्ध नहीं होगा।
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